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[जिनागम के अनमोल रत्न
मनोहर एवं स्वादिष्ट अनेक प्रकार के भोजन को छोड़कर मल का भक्षण करता है, उसी प्रकार दुष्टजन गुण को छोड़कर निरन्तर दोष को ग्रहण करते हैं ।।17-24।।
यहाँ लोक में सज्जन मनुष्य मुनि के समान शोभायमान होता है ।।
18-911
जो चारित्र का परित्याग नहीं करते हैं, अन्य के दोष को नहीं कहतेपरनिन्दा नहीं करते, सर्वनाश के होने पर भी न निर्धन मित्र से और न अन्य किसी दीन पुरूष से भी याचना करते हैं, हीन आचारवाले किसी नीच मनुष्य की सेवा नहीं करते हैं, अन्य का तिरस्कार नहीं करते हैं, तथा निर्दोष परिपाटी का उल्लंघन नहीं करते वे सज्जन होते हैं - यह सज्जन मनुष्य की पहिचान है ।।18-1511
जिस प्रकार चन्दन शरीर के अतिशय खण्डित किये जाने पर भी अपनी गन्ध को नहीं छोड़ता, उसे अधिक ही फैलाता है, जिस प्रकार ईख (गन्ना) कोल्हू यन्त्रों के द्वारा पीड़ित होता हुआ भी अपनी मधुरता को नहीं छोड़ता, तथा जिस प्रकार हितकारक स्वर्ण छेदा जाकर घिसा जाकर एवं अग्नि से सन्तप्त होकर भी अपने स्वरूप से विचलित नहीं होता - उसे और अधिक उज्वल करता है, उसी प्रकार सज्जन मनुष्य दुष्ट जनों के द्वारा पीड़ित हो करके भी विपरीत स्वभाव को प्राप्त नहीं होता ।।18-20।।
यदि शोक करने पर मनुष्य पुण्य और शरीर सुख प्राप्त करता हो, मरा हुआ प्राणी जीवित होकर फिर से आ जाता हो, अथवा इसके मरने पर अपना 'मरण न होता हो; तो यहाँ पुरूष का शोक करना सफल हो सकता है । परन्तु वैसा नहीं होता इसलिये शोक करना व्यर्थ है । 129-17।।
मोक्षार्थी सज्जन के लिए 'आत्मा' ऐसे दो अक्षर ही बस हैं उसमें जो
तन्मय होता है उसका मोक्ष सुख हथेली में है।
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श्री नेमिश्वर वचनामृत शतक-87