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________________ 10 समाधि-साधना और सिद्धि देहादि से ममता त्यागकर समतापूर्वक प्राणों का विसर्जन किया हो; उनके उस प्राणविसर्जन की क्रिया-प्रक्रिया को ही समाधिमरण या मृत्युमहोत्सव कहते हैं। . एतदर्थ सर्वप्रथम संसार से सन्यास लेना होता है। सन्यास अर्थात् संसार, शरीर व भोगों को असार, क्षणिक एवं नाशवान तथा दुःखरूप व दुःख का कारण मानकर उनसे विरक्त होना। सन्यास की सर्वत्र यही व्याख्या है। ऐसे संसार, शरीर व भोगों से विरक्त आत्म साधना के पथ पर चलनेवाले भव्यात्माओं को सन्यासी कहा जाता है। साधु तो सन्यासी होते ही हैं, गृहस्थों को भी इस सन्यास की भावना को निरन्तर भाना ही चाहिए। 'समाधि के लिए निजस्वरूप की समझ अनिवार्य है। आत्मा की पहचान, प्रतीति व श्रद्धा समाधि का प्रथम सोपान है। सच्चे-देव-शास्त्रगुरु की श्रद्धा उसमें निमित्त होती है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक् चारित्र रूप मोक्षमार्ग पर अग्रसर होकर सन्यासपूर्वक ही समाधि की साधना संभव है। __सम्यग्दर्शन अर्थात् वस्तुस्वरूप की यथार्थ श्रद्धा, जीव, अजीव, आस्रव बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष तथा पुण्य-पाप आदि सात तत्त्व अथवा नौ पदार्थों की सही समझ, इनमें हेयोपादेयता का विवेक एवं देव-शास्त्र-गुरु की श्रद्धा अनिवार्य है। इसके बिना सम्यग्दर्शन की प्राप्ति संभव नहीं है, जोकि मोक्षमार्ग का प्रथमसोपान है। सन्यास व समाधि । भी इसके बिना संभव नहीं है। ___ तत्वों का मनन, मिथ्यात्व का वमन, कषायों का शमन, इन्द्रियों का दमन, आत्मा में रमण- यही सब समाधि के सोपान हैं। वस्तुतः - कषाय रहित शान्त परिणामों का नाम ही तो समाधि है।
SR No.007150
Book TitleSamadhi Sadhna Aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2004
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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