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समाधि-साधना और सिद्धि
देकर अपने अमूल्य समय व सीमित शक्ति को बर्बाद करते हैं, यह भी एक विचारणीय बिन्दु है।
ऐसे लोग न केवल समय व शक्ति बर्बाद ही करते हैं, बल्कि आर्त-रौद्रध्यान करके प्रचुर पाप भी बाँधते रहते हैं। यह उनकी सबसे बड़ी मानवीय कमजोरी है। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि – जब भी
और जहाँ कहीं भी दो परिचित व्यक्ति बातचीत कर रहे होंगे वे निश्चित ही किसी तीसरे की बुराई भलाई या टीका-टिप्पणी ही कर रहे होंगे। उनकी चर्चा के विषय राग-द्वेषवर्द्धक विकथायें ही होंगे। सामाजिक व राजनैतिक विविध गतिविधियों की आलोचना-प्रत्यालोचना करके वे ऐसा गर्व का अनुभव करते हैं, मानों वे ही सम्पूर्ण राष्ट्र का संचालन कर रहे हों। भले ही उनकी मर्जी के अनुसार पत्ता भी न हिलता हो। नये जमाने को कोसना-बुरा-भला कहना व पुराने जमाने के गीत गाना तो मानो उनका जन्मसिद्ध अधिकार ही है। उन्हें क्या पता कि वे यह व्यर्थ की बकवास द्वारा आर्त-रौद्रध्यान करके कितना पाप बाँध रहे हैं, जोकि प्रत्यक्ष कुगति का कारण है।
भला जिनके पैर कब्र में लटके हों, जिनको यमराज का बुलावा आ गया हो, जिनके माथे के धवल केश मृत्यु का संदेश लेकर आ धमके हों, जिनके अंग-अंग ने जवाब दे दिया हो, जो केवल कुछ ही दिनों के मेहमान रह गये हों, परिजन-पुरजन भी जिनकी चिरविदाई की मानसिकता बना चुके हों। अपनी अन्तिम विदाई के इन महत्वपूर्ण क्षणों में भी क्या उन्हें अपने परलोक के विषय में विचार करने के बजाय इन व्यर्थ की बातों के लिए समय है? ___हो सकता है उनके विचार सामायिक हों, सत्य हों, तथ्यपरक हों, लौकिक दृष्टि से जनोपयोगी हों, न्याय-नीति के अनुकूल हों; परन्तु इस नक्कार खाने में तूती की आवाज सुनता कौन है? क्या ऐसा करना