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[६१] सुभद्र और यशोभद्र नामा, भद्रबाहु लोहाचार्य बखाना । चार मुनी सत्याणव बरसा, मांहि भए दसअंगधर परसा ॥९॥
ॐ ह्रीं एकादशांग धारक-पश्चात् सत्याणवे-वर्षमध्ये सुभद्रादि दशांगधारकमुनिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।
ऐलाचार्य जु माघ . सु नन्दी, धरसेनाचारज गुणवृन्दी । पुष्पदन्त भूतबलि नामा, प्रथम अंग धारी अभिरामा ॥१०॥ सोरु अठारा वर्ष जु मांहीं, निद्यागुण करि सब अधिकाई । अर्घ लेय पद पूज कराई, तातें मो सब पाप नसाई ॥११॥ __ ॐ ह्रीं एकादशांगधारकमुनिपश्चात् एकसौअठारहवर्षमध्येऐलाचार्यादि एकांगधारक मुनिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा , जिन चन्द्र कुन्दकुन्द मुनिइन्दा, मुनिगणमें ज्यों उडगन चन्दा । उमास्वामि सूत्रके कर्ता, समन्तभद्र बहु दुख के हरता ॥१२॥ शिवकोटी रु शिवायन स्वामी, पूज्यपाद बंदों गुणधामी । ऐलाचार्य वीरसेन जु जानों, जिनसेन नेमिचंद्रनैं मानों ॥१३॥ रामसेन तार्किक गुणधारी, अकलंक स्वामी बौद्ध जितारी।। विद्याअनंत माणिकनंदी, प्रभाचंद्र भव भय हर फन्दी ॥१४॥ रामचंद्र वासवचंद स्वामी, गुणभद्राचारज हैं नामी । वीरनंदि आदिक गुणस्वामी, सिद्धान्त चक्रवर्ति गुणधारी ॥१५॥ नग्न दिगंबर विद्या ईशा, पंचमकाल आदि गुणधीशा । जिनमत थापन बुद्धि गंभीरा, परमत उत्थापक महावीरा ॥१६॥ बारंबार त्रिकाल हमारी, तिन पद वंदन है सुखकारी । निर्विकार मूलगुण-धारी, निज संपति यो मो अघहारी ॥१७॥ अष्टद्रव्य मय अर्घ बनावो, पद पूजों में गुणगण गावों । सम्यग्ज्ञान देहु मुझ ईशा, याचत हों पदतर धरि शीशा ॥१८॥
ॐ ह्रीं एकांग-धारक-पश्चात् जिनचन्द्र-कुन्दकुन्दादिक-सर्वनिग्रंथमुनिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।