SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [६२ ] समुच्य जयमाला (सवैया तेईसा) पाणिपात्र - धर्मोपदेश करि भव-सागरतैं भविजन तारै, तीर्थंकरपद दायक भावन षोडश चित्त विषै विस्तारे । ग्रंथ त्यागि तप करें दुवादश, दशलक्षण मुनि धर्म संभारे, पंच महाव्रत धारत तिन पद, शीश नायके मस्तक धारें ॥१॥ ( चाल - बाजा बाजिया भला ) धार ॥०॥२॥ जयशील महा नग धर नमों मुनि, पंचेन्द्रिय संयम योग संयुक्त । चरणां लागिहों भला, मोहि त्यारोजी ऋषि दीनदयाल ॥१॥ ग्यारह अंग धारक नमों मुनी, पुनि चौदहजी पूरब के कोष्ठ - बुद्धिधर नमों मुनी, पादानुसार अकाश विहार ॥ च०॥३॥ पाणाहारी हू नमों मुनी, धेरै वृक्षमूल आतापन योग ॥ च०॥४॥ जे मौन धार स्थित अहारले मुनी, जाण्या राजरंकगृह सब इकसार ||३०||५|| जय पंचमहाव्रतधर नमों मुनी, जे समिति गुप्ति पालक बरवीर ॥ च० ॥ ६ ॥ जे देह माहिं विरक्त नमों मुनी, ते राग रोष भय मोह हरंत ॥०॥७॥ लोभ रहित संवर धेरै मुनी, दुखकारीजी नास्यो काम रु क्रोध ॥०॥८॥ स्वेद मैलतें लिप्त हैं मुनी, आरम्भ परिग्रहतें विरक्त ॥ च० ॥९॥ षट् आवश्यक धर नमों मुनी, द्वादशतप धर तन वे सोखँत ॥ च० | १०|| एक ग्रास दोय लेत हैं मुनी, वे नीरस भोजन करत अनिंद ॥०॥११॥ स्थिति मसान करते नमों मुनी, जो कर्म डहर सोखरकों दिनंद ||०||१२|| द्वादश संयम घर नमों मुनी, जो विकथा च्यार करी परिहार ||०||१३|| दो बीस परीषह सह नमों मुनी, संसार महार्णवतें उतरंत ॥ च० ||१४| जय धर्मबुद्धि थुति नृप कर मुनि जो काउसग्गा करि रात्रि गमंत ॥ च०॥१५॥
SR No.007149
Book TitleChousath Ruddhi Poojan Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy