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(अडिल्ल छन्द) आधि व्याधि कर नाश सर्व भयको हो । ऋद्धिवृद्धि घरमाहिं सकल संपति भरो ॥ जिनधर्मी जनमाहिं सकल मंगल करो। या पूजन परताप विघ्न सब ही टरो ॥
॥ इत्याशीर्वादः॥ (इति षष्ठ कोष्ठ पूजा)
सप्तमकोष्ठ रसऋद्धिधार मुनि-पूजा
॥ स्थापना ॥ (कुण्डलिया) रसऋद्धि-धार मुनिन्द के, चरण-कमल सिरनाय । बन्दों मन वच काय करि, भाव भक्ति चित लाय ॥ भाव भक्ति चित लाय करौं मैं शुभ आह्वानन ।
आप पधारो नाथ तिष्ठ इत यह संस्थापन ॥ निकट होहु मम बार बार विनती यह मेरी । पूज करन चित चाह हमारे ऋषिवर तुमरी ॥
ॐ ह्रीं रस-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वर समूह ! अत्र अवतरावतर ! संवौषट् । आह्वानम् ।
ॐ ह्रीं रस-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वर समूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ! ठः ठः ! स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं रस-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वर समूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं ।