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[४८] . (सोरठा) सर्वोषधि-ऋद्धिधार, सर्वमुनीश्वर हैं तिन्हें ।
वसु द्रव्यतें भरि थार, पूजों अर्घ चढायकैं। ॐ ह्रीं आमशैषधि-ऋद्धि-धारकादि-दृष्टि-विषौषधि-ऋद्धि-धारक-पर्यन्त सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
(दोहा) जिनके बन्दन पूजतें, सकल व्याधि मिटि जाय । औषधऋधि-धर मुनिनकों, नमो नमों मन लाय ॥१॥ .
(चाल बीजा की) जय सर्वोषधिऋधिके धार मुनिराय, मन वच बन्दोंजी मैं शीष नवाय, · ऋषिवरजी । नग्न दिगम्बर हो परम पवित्र हो चित अति अमलान, करुणा-सागर हो . दया-निधान, ऋषिवरजी ॥२॥ दरश करत ही हो वात . पित्त कफ खांस रु सांस, . . ज्वर शीतादिक हो दाह हुलास, ऋषिवरजी। . कुष्ट उदम्बर हो कालज्वर अरु सब संनिपात, साध्य असाध्य जु हो सब रोग नशात, ऋषिवरजी ॥३॥ पंगु पुरुषकै जी चरण होय गिरि शिखर चढन्त, जन्म अन्धकों जी सब . सूझत, ऋषिवरजी। गूंगा बोलता है हो वचन शुभ मुनिवर परताप, सब जीवों के होवै जो सुन्दरगात, ऋषिवरजी ॥४॥ सिंह व्याघ्र उन्मत्त गज़ः सब , भय मिट जाय, तुम पद ध्यावै जी नो लव ल्याय ऋषिवरजी ।