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स्वर्णथाल भरि चंद- किरण सम ल्यायो अक्षत उज्ज्वलको । अक्षय पद पावन कारन पूजों श्रीगुरु पाद युगलको ॥ यजों मुनि -चरण-कमलको, औषधि ऋध्यधीश यतीश ॥ यजों० ॥
ॐ ह्रीं सर्व क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न विनाशनाय सर्वरोगहराय सर्वशांतिकराय औषध - ऋद्धि-धारक- सर्वमुनीश्वरेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
काम शत्रु मो अधिक सतावै आतमके ल्यावत मल को । याके नाश करन के कारन मुनिपद चहोड़ों मलकों ॥ यजों० ॥
ॐ ह्रीं सर्व क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न विनाशनाय सर्वरोगहराय सर्वशांतिकराय औषध - ऋद्धि-धारक- सर्वमुनीश्वरेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
क्षुधावेदनी रोग महा दुट जारत हृदय कमलको ।
नाना विधि नेवजतें पूजों शांति करत क्षुत मलकों ॥ यजों० ॥ ॐ ह्रीं सर्व क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न विनाशनाय सर्वरोगहराय सर्वशांतिकराय औषध-ऋद्धि-धारक-सर्वमुनीश्वरेभ्यो नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
दीप रतनमय ज्योति मनोहर नाश करत तम - मलको ।
ज्ञान उद्योतन कारन पूजो श्रीगुरु पाद- कमलको ॥ यजों० ॥ ॐ ह्रीं सर्व-क्षुद्रोपद्रव-सर्व- विघ्न विनाशनाय सर्वरोगहराय सर्वशांतिकराय औषध-ऋद्धि-धारक-सर्वमुनीश्वरेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
अगर तगर मलयागिरि चन्दन केलीनन्द विमलकों ।
खेवत धूप दशांग अग्नि संग जारत है अघ - मलकों ॥ यजों० ॥
ॐ ह्रीं सर्व क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न विनाशनाय सर्वरोगहराय सर्वशांतिकराय औषध - ऋद्धि-धारक- सर्वमुनीश्वरेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
विविध भांतिके स्वर्णथाल भरि लीने बहु शुभ फलकों ।
शुद्ध भाव करि नितप्रति पूजों शिवसुख पावे विमलकों ॥ यजों० ॥
ॐ ह्रीं सर्व- क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न विनाशनाय सर्वरोगहराय सर्वशांतिकराय
औषध - ऋद्धि-धारक- सर्वमुनीश्वरेभ्यो फलम् निर्वपामीति स्वाहा ।