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अथ षष्ठकोष्ठस्थ औषधऋद्धिधारक मुनि
पूजा
॥ स्थापना ॥
(सवैया तेईसा)
औषधऋद्धि-धार मुनी अविकार धरैं तप भार महा अधिकाई । तिनके तनकी परछांही परै तहां रोग विषाद अनेक नशाई ॥ ऐसे मुनिराज करें सब शांति सरैं भव-भ्रान्ति जिनेश की नाईं । थापत हैं हम पूजन काज हरो मम विघ्न कल्याण कराईं ॥
ॐ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव-सर्व-विघ्न विनाशक औषध - ऋद्धि - धारक - सर्वमुनीश्वर समूह ! अत्रावतरावतर ! संवौषट् आह्वानम् ।
ॐ ह्रीं क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न विनाशकौषध - ऋद्धि - धारक - सर्वमुनीश्वर समूह ! अत्र मम् तिष्ठ तिष्ठ ! ठः ठः स्थापनम् ।
क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न - विनाशकौषध - ऋद्धि-धारक - सर्वमुनीश्र
ॐ ह्रीं समूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ।
अष्टक
(चाल - आसावारी तथा होली काफी )
रतन जडित भृंगार मध्य शुभ भर करि प्रासुक जलको । धार देत ही नाश करत है सब कर्मादिक मलको । यजों मुनि -चरण-कमलको, औषधि ऋध्यधीश यतीश ॥ यजों० ॥
ॐ ह्रीं सर्व क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न विनाशनाय सर्वरोगहराय सर्वशांतिकराय औषध - ऋद्धि-धारक- सर्वमुनीश्वरेभ्यो जलम् निर्वपामीति स्वाहा ।
भव - आताप बढ्यो अति भारी शोषत मोहि निबलकों ।
चन्दन केसर चरण चढाओ पावो पद निर्मलको ॥ यजों० ॥
ॐ ह्रीं सर्व क्षुद्रोपद्रव - सर्व विघ्न विनाशनाय सर्वरोगहराय सर्वशांतिकराय औषध - ऋद्धि- धारक - सर्वमुनीश्वरेभ्यो चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा ।