________________
. [४१]
ज्ञानावरणी दर्शनावरणी मोहकर्म दुखदाई | वेदनि नाम रु गोत्र अंतराय शिव-मग रोक कराई । तिनको हर करि शिव - फल पावन श्रीफल आदि चढाई । बलऋद्धि मुनीश्वर पूजत बल अनंत हो जाई । बल०॥ ॐ ह्री बलऋद्धिधारक सर्व मुनीश्वरेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा । जल गन्धाक्षत पुष्प जु नेवज दीप धूप फल लाई । अष्ट द्रव्य ये कनक - थाल भरि अर्घ करो गुण गाई ॥ झं झं झं झं झांज बजावत द्रुम द्रुम मिरदंग धुनाई । नृत्य करत नूपुर झंकारत मुनिपद अर्ध चढाई । बल०॥ ॐ ह्रीं बल- ऋद्धि-धारक - सर्व मुनीश्वरेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
प्रत्येक पूजा (दोहा)
बलऋद्धि धार मुनिंदवर, भये कर्म-मल छेद 1. अर्घ प्रत्येक चढायके, पूजों ऋद्धि के भेद |
ॐ ह्रीं बल-ऋद्धि-धारक - सर्व मुनीश्वरेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । ( सवैया तेईसा तथा कुसुमलता छन्द)
एक घाट एकट्ठी परिमित श्रुतज्ञान अक्षर सब तिनको । मनकरिकै सब अर्थ विचारै एक महूरत-मांहीं जिनको ॥ मनोबली यह ऋद्धि कहावत तांहि धेरै तिन श्रीमुनिवरको । अष्ट द्रव्यमय अर्घ लेय करि निशि दिन पूजत चरण कमलको ॥१॥ ॐ ह्रीं मनोबल-ऋद्धि- धारक - सर्व मुनीश्वरेभ्यो ऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । द्वादशांगमय श्रुतज्ञानको पाठ करें मुनिवर उच्चस्वर ।
शुद्धवर ॥
एक मुहूरत मांहीं सबकी स्वर व्यंजन मात्रादि तालव कंट खेद नहिं होवे वचनबली है सो ही ऋषिवर ।
तिनके चरन कमलको पूजो अष्टद्रव्य को धार अर्घकर ॥ २ ॥
ॐ ह्रीं वचनबल-ऋद्धिं - धारक - सर्व मुनीश्वरेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।