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जन्म जरा मृति नाश होत पुनि कर्म-कलंक हराई । बल ऋद्धिधार मुनीश्वर पूजत बल अनंत हो जाई ॥ ॐ ह्री बलऋद्धिधारक सर्व मुनीश्वरेभ्यो जलम् निर्वपामीति स्वाहा । मलयागिरि चन्दन मांहीं केसर रंग मिलावें । कर्पूरादि सुगन्ध द्रव्य बहु तामें मेलि घसावे । भव - आताप हरत भ्रम नाशत तम अज्ञान नशाई । बल० ॥ ॐ ह्री बलऋद्धिधारक सर्व मुनीश्वरेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा । अखित अखंडित सौरभ मंडित चन्द्र- किरण से श्वेतं । जल प्रक्षालित कनकथाल भरि पुञ्ज करों शुभ हेतं । परम अखंडित पद हो यातें अनुपम सुख अधिकाई । बल०॥ ॐ ह्री बलऋद्धिधारक सर्व मुनीश्वरेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा । मेरुमंदार सुपारिजात के हरि चंदन के लावें । चांदी सुवरण कमल मनोहर ग्राण रु चक्षु सुहावें । काम - बाण विध्वंसन कारण श्रीगुरु चरण चढाई । बल० ॥ ॐ ह्री बलऋद्धिधारक सर्व मुनीश्वरेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
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रोग- क्षुधा यह नित प्रति मोकों दुख देवै अति भारे । ताके नाशन कारण नेवज फेणी मोदक तारें । चंद्रिका गुंजा घेवर बावर कनकथाल भरवाई । बल०॥ ॐ ह्री बलऋद्धिधारक सर्व मुनीश्वरेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । दीप रत्नमय कर्पूरादिक स्वर्ण-रकाबी धारै । जगमग जगमग ज्योति करत है श्री मुनि-चरण उतारैं । मोह निबिड विध्वंसन हो निज ज्ञान उद्योत कराई । बल० ॥ ॐ ह्री बलऋद्धिधारक सर्व मुनीश्वरेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा । अगर तगर मलयागिरि चन्दन धूप दशांग बनावें । गुंजत भृंग सुगन्ध मनोहर खेवत दशदिशि धावें । कर्म उडै मनु धूम्र मिसनितें आतम उज्ज्वल थाई । बल० ॥ ॐ ह्री बलऋद्धिधारक सर्व मुनीश्वरेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।