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(दोहा) दयामयी जिनधर्म यह, वृद्धि होउ सुखकार । सुखी होउ राजा प्रजा, मि, सर्व दुख भार ॥
॥ इत्याशीर्वाद ॥ (इति चतुर्थ कोष्ठ पूजा)
अथ पंचम कोष्ठस्थ बलऋद्धि धारक मुनि
पूजा । ॥ स्थापना ॥ (लक्ष्मीधरा छन्द) धरत सिर धरत सिर धरत सिर चरन तर ।
करत हम करत हम करत गुरु भक्ति वर ॥ थपत इत थपत इत थपत बल ऋषि-चरन ।
बलऋद्धि बलऋद्धि बलऋद्धि अर्चन करन । ॐ ह्रीं बलऋद्धि धारक सर्वमुनीश्वरसमूह ! अत्रावतरावतर । संवौषट् । आह्वानम् ।
ॐ ह्रीं बलऋद्धि धारक सर्वमुनीश्वर समूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं बलऋद्धि धारक सर्वमुनीश्वर समूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं ।
अष्टक ।
(चाल जोगीरासा) क्षीरोदधि पदमादि द्रहनिको गंगादिक जल लायो । रतन जडित श्रृंगार धार दे श्रीगुरु-चरण चढायो ।