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हम शरण तिहारीजी, भव भव सुखकारीजी ।
तातें हम धारी भक्ति हिरदा विषेंजी ॥१८॥
(दोहा)
धेरै
विक्रियऋद्धिधर मुनिनकी, कंठ मुनिस्वरूप को ध्यायकै, होवै बुद्धि
गुणमाल । विशाल ||१९||
ॐ ह्रीं विक्रिया ऋद्धिप्राप्त सर्व मुनीश्वरेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
(सोरठा)
होय विघन सब नाश, मंगल नितप्रति हो सदा । होय ऋद्धि परकाश, पूजन जो या विधि करै ॥ इत्याशीर्वादः ।
(इति तृतीय कोष्ठ पूजा)