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[३२] कोई लादै बांधैजी, धरि जूडा कांधेजी ।
बहु मारै अरु रांधे, निर्दय नर घणाजी ॥५॥ मानुष भव मांहींजी, सुख है छिन नाहीजी ।
सबकू . दुखदाई, गर्भज वेदनाजी ॥६॥ बालक वय मांहींजी, कछु ज्ञानहु नांहींजी।
पाई फिर तरुणाई, विषयचिंता घणीजी ॥७॥ बहु इष्टवियोगाजी, अरु अशुभ संयोगाजी ।
तामें दुख भुगते, क्षण समता नांहींजी ॥८॥ तीजो पन आयोजी, बहु रोग सतायोजी।
इह विधि दुख पायो, मानुषभवमें सहीजी ॥९॥ सुरपदवी मांहींजी, माला मुरझाई जी।
चिन्ता दुखदाई, भेगी मरणकीजी ॥१०॥ ई विधि संसाराजी, ताको नहिं पाराजी।
यह जाण असारा, त्यागि मुनी भएजी ॥११॥ गृह-भोग विनश्वरजी, जाणे योगी वरजी ।
पद त्याग अवनीश्वर, लीनी वनमहीजी ॥१२॥ तप बहुविध कीन्होजी, निज आतम चीन्होजी ।
सकलागम भीनो, मुनिपद जे धरेंजी ॥१३॥ बहु ऋद्धिको धारेंजी, नहिं कारिज सारेंजी।
आतमगुण पाले निज काजकोजी ॥१४॥ विक्रियऋद्धिधारीजी, मुनिवर अविकारीजी। . .
तिनके गुण भारी, कहांलों वरणऊँजी ॥१५॥ ऐसे मुनिवरकोजी, कब है हम औसरजी ।
. धनि धनि वह द्यौसर, मुनि मोको मिलेजी ॥१६॥ तिनके पदकी रजजी, धरि हैं शुभ शीर्षजजी ।
तबही हम कारज, बहुविधि के सरेंजी ॥१७॥