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[२९] पिंड सुधामय मोदक उज्जवल दिव्य सुगन्ध रसाल । स्वर्णथाल भरि चरण चढाये होत क्षुधा निरवार । मुनीश्वर पूजत हों में विक्रय ऋद्धिके धार मुनीश्वर पूजत हों। ॐ ह्रीं विक्रिया-ऋद्धि-प्राप्त-सर्वमुनीश्वरेभ्यो ! क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि० जगमग जगमग ज्योति करत है दीप शिखा तमहार। मोह विध्वंशन ज्ञान उद्योतक आर्तिक चरण उतार ॥ मुनी० ॥ ॐ ह्रीं विक्रिया-ऋद्धि-प्राप्त-सर्वमुनीश्वरेभ्यो ! मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि० कृष्णागरु मलयागिरि चन्दन-धूप अग्नि संग जार । कर्म-धूम्र उडि दश दिश धावे भ्रमर करत गुजार ॥. मुनी० ॥ ॐ ह्रीं विक्रिया-ऋद्धि-प्राप्त-सर्वमुनीश्वरेभ्यो ! अष्टकर्मदहनाय धूपं नि० श्रीफल लोंग बिदाम सुपारी एला-फल सहकार । सुवरण थाल भराय यजत ही होय मुक्ति भरतार ॥ मुनी० ॥ ॐ ह्रीं विक्रिया-ऋद्धि-प्राप्त-सर्वमुनीश्वरेभ्यो ! मोक्षफलप्राप्तये फलं नि० जल गन्धाक्षत पुष्प जु नेवज दीप धूप फल सार । स्वर्णथाल भरि अर्घ चढावों करि जय जय जयकार ॥ मुनी० ॥ ॐ ह्रीं विक्रिया-ऋद्धि-प्राप्त-सर्वमुनीश्वरेभ्यो ! अनर्घपदप्राप्तये अर्घम् नि०
प्रत्येक पूजा
(दोहा) विक्रय ऋद्धिके एकदस, भेद धार ऋषिराज । भिन्न भिन्न तिन अर्घ दे, पूजों शिव हित काज ॥ ॐ ह्री विक्रिया-ऋद्धि-धारक एकादशभेदसहितसर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्व० .
(चाल अठाई पूजनकी) .. कमल-तन्तु पर जो जो निवसै निराबाध तिष्ठाई। अणु समान काया हो जावै यह अणिमा ऋद्धि पाई ॥ मुनीश्वर पूजों अर्घ चढाई, जो विक्रियाऋद्धि शुभ पाई ॥१॥ ॐ ह्रीं अणिमा-ऋद्धि-प्राप्त-सर्वमुनीश्वरेभ्योऽर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।