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विपाकसूत्र एकादश अंगं, कर्मविपाक रसादिक भंगं । पद इक कोड चौरासी लक्षं, ताको पढि मुनि भये विचक्षं ॥ अंग द्वादशमों दृष्टीवाद, पंच भेद ताके सब. पादं । शत अठ कोडिरु अडसठ लक्षं, छपन हजार पांच सब दक्षं ॥ प्रथम भेद परिकर्मजु नाम, पंच प्रज्ञप्ति ग्रन्थ अभिरामं । चंद्र सूर्य जम्बूद्वीप - सुव्यक्ति, द्वीपसमुद्र व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥ इनके पद इक कोड इक्यासी, लाखहजार पांच है खासी । तिनमें सब इनको है रूपा, ये सब पढ़ें मुनीश्वर भूपा ॥ दूजो भेद सूत्र मरजादो, त्रिशत तरेसठि भेद कुवादी । लाख तरेसठि पद हैं याके, पढ़ें ताहि बंदो पद जाके ॥ प्रथमानुयोग तीजो वर भेदं, त्रिसठि शलाका पुरुष निवेदं । पाँच सहस पद याके जानो, पाप पुण्य फल सर्व पिछानो ॥ चौथो भेद पूर्वगत जामें, पूरव चौदह गर्भित तामें । कोडि पिचाणव लक्ष पचासं, अधिक पांच पद जानो तासं ॥ श्रुत संपति सब इनके मांहीं, धारण कर सब श्रुत अवगाही । जो मुनीश सब पूरव धारी, तिनकी महिमा अगम अपारी ॥ . पंच भेद चूलिका जासा, जल थल माया रूप अकाशा । पद दशकोडि रु लख उणचासा, षट् चालीस सहस्र सब तासा ॥ इकसौ बारह कोडि पदावन, लाख तियासी सहस अठावन । पांच. अधिक सब पद अंग तिनके, मुनिवर पढ़ें नमों पद तिनके ॥ इकावन कोडि रु लाख आठ तित, सहस चौरासी षट्शत परिमित । साढा इकविस श्लोक अनुष्टं, एक जु पदके भये स्पष्टं ॥ द्वादशांगमय रचना सारी, बुद्धि ऋद्धि में गर्भित भारी । तप प्रभाव ऐसी ऋद्धि धारी, तिन पद ढोक त्रिकाल हमारी ॥