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जयमाला
(दोहा)
सर्व संघ मंगल करन, बुद्धिऋद्धि धरधीर । मुनी तास थुति करत ही, बुद्धि शुद्ध हो वीर ॥
(वेसरी) प्रथम अंग आचार जु जानो, मुनि आचरण तासमें मानो। सहस अठारह पद लखि यांके, परको त्यागि आप रंग राचे ॥ सूत्रकृतांग अंग है दूजो, सूत्र अर्थ. सामान्य जु बूजो । पद छत्तीस हजार जु यांके, पढें मुनी सब अवयव तांके ॥ स्थान अंग तीजो है यामें, सम स्थानन की संख्या जामें । सहस बयाल पदनमें ये हैं, पढ़े मुनी तिन नमन करे हैं। समवाय अंग चौथो है यामें, सदृश पदारथ बरण्या जामें। पद इक लख चउसठि हजारं, पढें मुनी उतरें भव पारं ॥ पंचमः अंग व्याख्याप्रज्ञप्ती, तामें सप्त भंग विज्ञप्ति । गणधर प्रश्न किये जो वरनन, पद लख दो अठवीस सहनन ॥ ज्ञातृकथा अंग षष्ठम जानो, त्रिषष्ठि पुरुष को धर्म कथानो । पांच लाख अरु छपन हजारं, पद सब पढें मुनीश्वर सारं ॥ सप्तम अंग उपासकाध्ययनं, श्रावक धर्म तणों सब अयनं । पद ग्यारह लख सतर हजारं, सो सब पढें मुनी अविकारं ॥ . अष्टम अंग अंतकृत दश है, तामें अंतकृतकेवलि जस है। तेविस लख अडतीस हजारं, पाद पढ़े मुनिवर भवतारं ॥ सह उपसर्ग अनुत्तर जननं, अनुतरपाद दशांगं नवमं । बाणव लख चवचाल हजारं, पाठ पढ़ें मुनिवर सुखकारं ॥ दशम अंग है प्रश्नव्याकरण, होनहार सब सुख दुख निरणं । लाख तरेणव सोल हजारं, पाद पढ़ें मुनिवर जगतारं ॥