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[१९] अन्तरीक्ष अरु भोम अंग स्वर व्यंजन लक्षण ताईं। चिह्न स्वप्न अष्टांग-निमित लखि होनहार बतलाई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, अष्टांग-निमित्त ऋधिधार मुनीश्वर पूजो० ॥१५॥
ॐ ह्रीं अष्टांग-निमित्त-बुद्धि-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।
बिना पढ़े ही जीवादिकके सकल भेद बतलाई । चौदह पूरब ज्ञान धार सब भेद देय समझाई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, प्रज्ञाश्रवण ऋधिधार मुनीश्वर पूजो० ॥१६॥ ॐ ह्रीं प्रज्ञाश्रवण-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
पर पदार्थतें आप भिन्न है जीव यहै लखवाई । यातें दिगम्बर दृढ मुद्रा धरि परकी चाह मिटाई ।। मुनीश्वर पूजो हो भाई, प्रत्येक-बुद्धि-ऋद्धिधार मुनीश्वर पूजो० ॥१७॥ ॐ ह्रीं प्रत्येक-बुद्धि-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । परवादी जब वाद करनको ऋषिवर सन्मुख आई। स्यादवाद करि तिन वच खंडन विजय-ध्वजा फहराई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, वादित्व ऋद्धिधर धीर मुनीश्वर पूजो० ॥१८॥ ॐ ह्रीं वादित्व-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।
केवल ऋद्धिको आदि लेय बुद्धि ऋद्धि अष्टदश । धारक तिनके नग्न दिगम्बर साधु सर्व दिश । समुचय अर्घ चढाय पूजहों सर्वदा ।
सर्व विघ्न करि नाश बुद्धि यो शर्मदा ॥ ॐ ह्रीं केवल-ऋद्ध्यादि-वादित्य-ऋद्धि-पर्यंत अष्टादश-बुद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।