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(धत्ता)
यह जयमाला, परम रसाला, कुंद ऋद्धि धर गुणमाला । मुनिगण गुणमाला, हर जंजाला, बुद्धि विशाला करि भाला ||
ॐ ह्रीं शुद्ध-बुद्धि-ऋद्धि-धारक - सर्वमुनीश्वरेभ्यो जयमाला पूर्णाऽर्घ्यं नि० । (दोहा)
बुद्धि ऋद्धिधर मुनितणी, पूज करे जु बुद्धि प्रचुर ताकै हृदय, परगट होय
॥ इत्याशीर्वादः ॥
इति प्रथम कोष्ठ पूजा
सदीव | अतीव ॥
अथ द्वितीयकोष्ठे चारणऋद्धिधारक मुनिवर
पूजा
॥ स्थापना ॥
( अडिल्ल छंद)
क्रिया चारणी ऋद्धि भेद नव है सही ।
तिनके धारक सर्व मुनिश्वर हैं मही ॥ आह्वानन, संस्थापन, मम सन्निहित करों ।
मन वच तन करि शुद्ध वार त्रय उच्चरों ॥ ॐ ह्रीं चारणऋद्धिधारकसर्वमुनीश्वरसमूह ! अत्रवतरावतर ! संवौषट् ।
आह्वानम्
ॐ ह्रीं चारणऋद्धिधारकसर्वमुनीश्वरसमूह ! अत्र मम तिष्ठ तिष्ठ ! ठः ठः ! स्थापनम्
ॐ ह्रीं चारणऋद्धिधारकसर्वमुनीश्वरसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं ।