________________
[१७] अविभागी पुद्गल परमाणु सो' प्रत्यक्ष लखाई। अवधि बुद्धि ऋद्धि धार मुनीश्वर चरण कमल शिरनाई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, अवधि बुद्धि-ऋद्धिधार मुनीश्वर पूजो० ॥३॥ ॐ हीं अवधि-बुद्धि-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽघ निर्वपामीति स्वाहा । कोष्ठ मांहि जो वस्तु भरी है मन वाञ्छित कढवाई । प्रश्न करत. ही शब्द-अर्थमय शास्त्र सर्व रचवाई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, कोष्ठ बुद्धि-ऋद्धिधार मुनीश्वर पूजो० ॥४॥ ॐ ह्रीं कोष्ठ-बुद्धि-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । बीज बोय ज्यों भूमि मांहि कृषि बहुत धान्य निपजाई । बीज एक त्यों धारि चित्त ऋषि सर्वग्रंथ .. सुनवाई ॥. मुनीश्वर पूजो हो भाई, बीज बुद्धि-ऋद्धिधार मुनीश्वर पूजो० ॥५॥ ॐ ह्रीं बीज-बुद्धि-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । चक्रवर्तिकी सब सेनाके जीव अजीव रु ताई । युगपत् शब्द सुणै जो श्रवणन सब धारण हो जाई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, संभिन्नश्रोत्र ऋद्धिधार ऋषीश्वर पूजो० ॥६॥ ॐ ह्रीं संभिन्न-श्रोतृ-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । सर्व ग्रंथको एक पाद लखि दे सब ग्रंथ सुनाई। पादानुसारिणी ऋद्धि यही है याहिं धरै मुनिराई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, पादानुसारिणी ऋद्धिधार मुनीश्वर पूजो० ॥७॥ ॐ ह्रीं पादानुसारिणी-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । नव योजनतें बहुत अधिक को स्पर्शन बल अधिकाई । दूर स्पर्श ऋद्धिधार ऋषीश्वर चरण कमल लवलाई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, दूरस्पर्श-ऋद्धिधार ऋषीश्वर पूजो० ॥८॥ ॐ ह्रीं दूरस्पर्शन-ऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।