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श्रीफल पूंग -बिदाम, खारिक मनहारी । मैं मुक्ति मिलनके काज, चढाऊँ भरि थारी ॥
मैं बुद्ध-ऋद्धि धर. धीर, मुनिवर पूज करों। . यातें हों ज्ञान गहीर, भव-संताप हरों ॥ ॐ ह्रीं अष्टादश-बुद्धि-ऋद्धिधर-सर्वमुनीश्वरेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
सब द्रव्य अष्ट भरि थार, बहुविध तूर बजै । करि गीत नृत्य उत्साह, हर्षित अर्घ सजै ॥ श्री ऋषिवर चरण चढाय, फल यह मांगत हों।
मम बुद्धि ऋद्धि द्यो सार, जोरी कर याचत हों॥ ॐ ह्रीं अष्टादश-बुद्धि-ऋद्धि-धारक-सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।
प्रत्येक पूजा - (दोहा) अष्टादश बुद्धिऋद्धिके, धारक जे ऋषिराज । तिन्हें अर्घ प्रत्येक करि, यजों बुद्धि के काज ॥
ॐ ह्री अष्टादश-बुद्धि-ऋद्धि-धारक-सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।
(चाल टप्पा) सकल द्रव्य पर्याय गुणनि करि समय एक लखवाई । लोक अलोक चराचर जामें हस्तरेख समझाई। मुनीश्वर पूजो हो भाई,
केवल बुद्धिऋद्धि-धार मुनीश्वर पूजो हो भाई ॥१॥ ॐ ह्री केवल-बुद्धि-ऋद्धि-धारक-सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । ढाई द्वीपके सब जीवन की मनकी बात लखाई । युगपत् एक कालमें जाने मनपर्यय ऋद्धि · पाई ॥ मुनीश्वर पूजो हो भाई, मनपर्यय ऋद्धिधार मुनीश्वर पूजो० ॥२॥ ॐ हीं मनःपर्यय-बुद्धि-ऋद्धि-धारक सर्व मुनीश्वरेभ्योऽधैं निर्वपामीति स्वाहा ।
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पूणा हा भाइ,