________________
[८]
लेय पक्वान्न बहु विधिके, भरों शुभ थाल सुवरणके ।
असातावेदनी क्षुरणन, यजों मुनिराजके चरणन ॥
ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् नि०
जगमगे दीप लेकरिकें, रकाबी स्वर्ण में धरिके ।
मोहविध्वंस के करणन, यजों मुनिराजके चरणन ॥
ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि०
अगर मलयागिरी चंदन, खेयकरि धूपके गंधन ।
होय कर्माष्टको जरनन, यजों मुनिराजके चरणन ॥
ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं नि०
सिरीफल आदि फल ल्यायो, स्वर्णको थाल भरवायो । होय शुभ मुक्ति को मिलनन, यजों मुनिराजके चरणन ॥
ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं नि०
जलादिक द्रव्य मिलवाए, विविध वादित्र बजवाये ।
अधिक उत्साह करि तनमें, चढावों अर्घ चरणनमें ॥ . - ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो अनर्घपद प्राप्तये अर्घम् नि०
जयमाला.
(सोरठा) तारण तरण जिहाज, भव समुद्र के मांहि जे । ऐसे श्री ऋषिराज, सुमरि सुमरि विनति करों ॥१॥