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________________ अथ समुच्चय पूजा ___ (गीता छन्द) ॥ स्थापना ॥ संसार सकल असार जामें सारता कछु है नहीं, धन धाम धरणी और गृहिणी त्यागि लीनी वन मही। ऐसे दिगम्बर हो गये, अरु होयगें वरतत सदा, इह थापि पूजों मन वचन करि देहु मंगल विधि तदा ॥१॥ ॐ ह्रीं भूतभविष्यतवर्तमानकालसम्बन्धि पुलाकादि पंचप्रकारसर्वमुनीश्वराः ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानम्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ, ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं । (चाल रेखता) लाय शुभ गंगजल भरिकै, कनक श्रृंगार धरि करिकै । जन्म जर मृत्यु के हरनन, यजों मुनिराजके चरणन । ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि० घसों काश्मीर संग चंदन, मिलाओ केलिको नंदन । करत भवतापको हरनन, यजों मुनिराजके चरणन ॥ ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं नि० अक्षत शुभचंद्र के करसे, भरों कण थाल में सरसे । __ अक्षय पद प्राप्तिके करणन, यजों मुनिराजके चरणन ॥ ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो अक्षयपद प्राप्तये अक्षतं नि० पुहुप ल्यो घ्राणके रंजन, उड़त तामांहिं मकरंदन । मनोभव बाणके हरनन, यजों मुनिराजके चरणन ॥ ॐ ह्रीं भूत-भविष्यत्-वर्तमानकाल-सम्बन्धि पुलाक-वकुश-कुशीलनिग्रंथ-स्नातक पंच प्रकार सर्वमुनीश्वरेभ्यो कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं नि०
SR No.007149
Book TitleChousath Ruddhi Poojan Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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