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________________ 84 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना __(6) धारणा-धारणा का अर्थ है-चित्त को अभीष्ट विषय पर जमाना।' धारणा आन्तरिक अनुशासन की पहली सीढ़ी है। धारणा में चित्त किसी एक वस्तु पर केन्द्रित हो जाता है। इस योगांग में चित्त को अन्य वस्तुओं से हटाकर एक वस्तु का कोई अंश अथवा सूर्य, चन्द्रमा या किसी देवता की प्रतिमा में से कोई भी रह सकती है। इस अवस्था की प्राप्ति के बाद साधक ध्यान के योग्य हो जाता है। .... (7) ध्यान-ध्यान सातवाँ योगांग है। ध्यान का अर्थ है अभीष्ट विषय का निरन्तर अनुशीलन | ध्यान की वस्तु का ज्ञान अविच्छिन्न रूप से होता है, जिसके फलस्वरूप विषय का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है। पहले विषयों के अंशों का ज्ञान होता है, फिर सम्पूर्ण विषय की रूपरेखा विदित होती है। (8) समाधि-समाधि अन्तिम योगांग है। इस अवस्था में ध्येय वस्तु की ही चेतना रहती है। इस अवस्था में मन अपने ध्येय विषय में पूर्णतः लीन हो जाता है, जिसके फलस्वरूप उसे अपना कुछ भी. ज्ञान नहीं रहता। ध्यान की अवस्था में वस्तु की ध्यान-क्रिया और आत्मा की चेतना रहती है, परन्त समाधि में यह चेतना लुप्त हो जाती है। इस अवस्था को प्राप्त हो जाने से 'चित्तवृत्ति का निरोध' हो जाता है। समाधि को योगदर्शन में साधन के रूप में चित्रित किया गया है। समाधि की यह महत्ता इसलिए है कि उससे चित्तवृत्ति का निरोध होता है। इस प्रकार चित्तवृत्ति का निरोध साध्य हुआ। धारणा, ध्यान और समाधि का साक्षात् सम्बन्ध योग से है। पहले पाँच अर्थात् यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार का योग से साक्षात् सम्बन्ध नहीं है। ये पाँच योगांग तो एक प्रकार से धारणा, ध्यान और समाधि के लिए तैयारी मात्र हैं। पहले पाँच योगांग के बहिरंग साधन और अन्तिम तीन को अन्तरंग साधन कहा जाता है। अष्टांग योग के पालन से चित्त का विकार नष्ट हो जाता है। आत्मा अपने यथार्थ स्वरूप को पहचान पाती है, क्योंकि तत्त्वज्ञान की वृद्धि होती है। आत्मा को प्रकृति, देह, मन, इन्द्रियों से भिन्न होने का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसप्रकार भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। समाधि के भेद योगदर्शन में समाधि दो प्रकार की मानी गयी है - (1) सम्प्रज्ञात समाधि (2) असम्प्रज्ञात समाधि
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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