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________________ 82 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना का त्याग ही 'अस्तेय' है। दूसरे की सम्पत्ति पर अनुचित रूप से अधिकार जमाना 'स्तेय' कहा जाता है। इस मनोवृत्ति का परित्याग ही अस्तेय का दूसरा नाम है। - ब्रह्मचर्य चौथा यम है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है-विषय-वासना की ओर झुकानेवाली प्रवृत्ति का परित्याग। ब्रह्मचर्य के द्वारा ऐसी इन्द्रियों के संयम का आदेश दिया जाता है, जो कामेच्छा से सम्बन्धित हैं। अपरिग्रह पाँचवाँ यम है। लोभवश अनावश्यक वस्तु के ग्रहण-त्याग को ही अपरिग्रह कहा जाता है। उपर्युक्त पाँच यमों के पालन में वर्ण, व्यवसाय, देशकाल के कारण किसी प्रकार का अपवाद नहीं होना चाहिए। योग-दर्शन में मन को सबल बनाने के लिए ये 5 प्रकार के यम का पालन आवश्यक समझा गया है। इनके पालन से मानव बुरी प्रवृत्तियों को वश में करने में सफल होता है, जिसके फलस्वरूप वह योग-मार्ग में आगे बढ़ता है। (2) नियम–'नियम' योग का दूसरा अंग है। नियम का अर्थ है - सदाचार को. प्रश्रय देना। नियम भी पाँच माने गये हैं - (क) शौच-शौच के अन्दर बाह्य और आन्तरिक शुद्धि समाविष्ट है। स्थान, पवित्र, भोजन, स्वच्छता के द्वारा बाह्य शुद्धि तथा मैत्री, करुणा, सहानुभूति, प्रसन्नता, कृतज्ञता के द्वारा आन्तरिक अर्थात् मानसिक शुद्धि को अपनाना चाहिए। (ख) सन्तोष-उचित प्रयास से जो कुछ भी प्राप्त हो, उसी से सन्तुष्ट रहना सन्तोष कहा जाता है। शरीर-यात्रा के लिए जो नितान्त आवश्यक है, उससे भिन्न अलग चीज की इच्छा न करना सन्तोष है। (ग) तपस-सर्दी-गर्मी सहने की शक्ति लगातार बैठे रहना और खड़ा रहना, शारीरिक कठिनाइयों को झेलना, ‘तपस' कहलाता है। (घ) स्वाध्याय-शास्त्रों का अध्ययन करना तथा ज्ञानी पुरुष के कथनों का अनुशीलन करना। (ङ) ईश्वर प्रणिधान-ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखना परमावश्यक है। योग-दर्शन में ईश्वर के ध्यान को योग का सर्वश्रेष्ठ विषय माना जाता है। यम और नियम में अन्तर यह है कि यम निषेधात्मक सद्गुण है,
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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