________________
कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 81 है। क्षिप्त, मूढ़ और विक्षिप्त चित्त की साधारण अवस्थाएँ हैं, जबकि एकाग्र 'और निरुद्ध चित्त की असाधारण अवस्थाएँ हैं। . . . .
- योग के अष्टांग साधन - योगदर्शन सांख्य दर्शन की तरह बन्धन का मूल कारण अविवेक को मानता है। पुरुष और प्रकृति के पार्थक्य का ज्ञान नहीं रहने के कारण ही आत्मा बन्धन-ग्रस्त हो जाती है। मोक्ष को अपनाने के लिए तत्त्वज्ञान पर अधिक बल दिया गया है। योग के मतानुसार तत्त्वज्ञान की प्राप्ति तब तक नहीं हो सकती है, जब तक मनुष्य का चित्त विकारों से परिपूर्ण हैं। अतः योगदर्शन में चित्त की स्थिरता को प्राप्त करने के लिए चित्तवृत्तियों का निरोध करने की बात की है। गीता में योग का अर्थ आत्मा का परमात्मा से मिलन माना गया है, परन्तु योगदर्शन में योग का अर्थ है राजयोग। योग मार्ग की 8 सीढ़ियाँ हैं, इसे योग के अष्टांग साधन भी कहा जाता है। योग के अष्टांग मार्ग इस प्रकार हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
. इन्हें 'योगांग' भी कहा जाता है। अब हम एक-एक कर योग के इन अंगों की व्याख्या करेंगे।
1. यम-यम योग का प्रथम अंग है। बाह्य और आभ्यन्तर इन्द्रियों के संयम की क्रिया को 'यम' कहा जाता है। यम 5 प्रकार के होते हैं - : (1) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अस्तेय, (4) ब्रह्मचर्य, (5) अपरिग्रह।
- अहिंसा का अर्थ है-किसी समय किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करना । अहिंसा का अर्थ भी प्राणियों की हिंसा का परित्याग करना ही नहीं है, बल्कि इनके प्रति क्रूर व्यवहार का भी परित्याग करना है। योगदर्शन में हिंसा को सभी बुराइयों का आधार माना गया है। यही कारण है कि इसमें अहिंसा के पालन पर अत्यधिक जोर दिया गया है।
सत्य का अर्थ है-मिथ्यावचन का परित्याग। व्यक्ति को ऐसे वचनों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें सभी प्राणियों का हित हो। जिस वचन से किसी भी प्राणी का अहित हो, उसका परित्याग परमावश्यक है। जैसा देखा, सुना और अनुमान किया; उसी प्रकार मन का नियन्त्रण करना चाहिए।
अस्तेय तीसरा यम है। दूसरे के धन का अपहरण करने की प्रवृत्ति