SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 75 न्याय ईश्वर को वेद-सृष्टा मानता है, परन्तु सांख्य इस कथन का विरोध करते हुए कहता है कि वेद अपौरुषेय हैं। जब वेद अपौरुषेय हैं तो वेद का सृष्टा ईश्वर को ठहराना भ्रामक है, क्योंकि ईश्वर व्यक्तिपूर्ण है। सच पूछा जाए तो वेद के रचयिता ऋषि हैं, जिन्होंने वेद में शाश्वत सत्यों के भण्डार निहित कर दिये हैं। ईश्वर की सत्ता प्रत्यक्ष, अनुमान और वैदिक शब्द से असम्भव है। वेद के इस प्रकार के वेद-वाक्य मुक्त आत्माओं की प्रशंसा में कहे गये हैं। अतः वेद के रचयिता के रूप में ईश्वर को सिद्ध करना समीचीन नहीं है। सांख्य को अनीश्वरवादी प्रमाणित करने में ये युक्तियाँ बल प्रदान करती हैं। इन्हीं युक्तियों के आधार पर सांख्य अनीश्वरवादी कहा जाता है। विद्वानों का एक दूसरा दल है, जो सांख्य को ईश्वरवादी प्रमाणित करने का प्रयास करता है। इस दल के समर्थकों में विज्ञानभिक्षु का नाम विशेष उल्लेखनीय है। उनके मत से सांख्य अनीश्वरवादी नहीं है। सांख्य ने केवल इतना ही कहा है कि ईश्वर के अस्तित्व के लिए कोई प्रमाण नहीं है। सांख्य सूत्र में यह कहा गया है 'ईश्वरासिद्धेः' अर्थात् ईश्वर असिद्ध है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सांख्य अनीश्वरवादी है, अमान्य प्रतीत होता है। यदि सांख्य सूत्र में यह कहा जाता-'ईश्वराभावात्' अर्थात् ईश्वर का अभाव है तो सांख्य को अनीश्वरवादी कहना युक्तियुक्त होता । यह कहना कि 'ईश्वर का प्रमाण नहीं है और यह कहना कि 'ईश्वर का अस्तित्व नहीं है दोनों दो बातें हैं। ऐसे दार्शनिकों ने सांख्य में ईश्वर का निषेध किया है, जो उस दर्शन में ईश्वर की आवश्यकता नहीं समझते। विज्ञानभिक्षु का कहना है कि यद्यपि प्रकृति से समस्त वस्तुएँ विकसित होती हैं, तथापि अचेतन प्रकृति को गतिशील और परिवर्तित करने के लिए ईश्वर के सान्निध्य की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार चुम्बक के सान्निध्य मात्र से लोहे में गति आ जाती है, उसी प्रकार ईश्वर के सान्निध्य मात्र से प्रकृति क्रियाशील होती है और महत् में परिणत होती है। विज्ञानभिक्षु का कथन है कि युक्ति तथा शास्त्र दोनों से ही ऐसे ईश्वर का प्रमाण मिलता है। प्रो. हिरियन्ना ने सांख्य को ईश्वरवादी सिद्ध करने के प्रयास की निन्दा की है; क्योंकि ईश्वरवाद सांख्यदर्शन के स्वरूप के विपरीत है।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy