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________________ 76 कविवर धानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना उन्होंने कहा है-कुछ प्राचीन एवं नवीन विद्वानों ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि कपिल को ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध करना असम्भव है, लेकिन यह दर्शन युगीन सांख्य की प्रवृत्ति के विरुद्ध प्रतीत होता है। . . यद्यपि सांख्य के ईश्वर विषयक विचार विवादग्रस्त हैं, फिर भी अधिकांशतः विद्वानों ने सांख्य को अनीश्वरवादी कहा है। सांख्य दर्शन की ईश्वरवादी व्याख्या को अधिक मान्यता नहीं मिली है। कुछ विद्वानों का मत है कि मूल सांख्य ईश्वरवादी था; परन्तु जड़वाद, जैन और बौद्ध दर्शनों के प्रभाव में आकर वह अनीश्वरवादी हो गया। कारण जो कुछ भी हो, सांख्य को अनीश्वरवादी कहना ही अधिक प्रमाण संगत प्रतीत होता है। . डॉ. दासगुप्त ने सांख्य को निरीश्वरवादी चित्रित किया है। उन्होंने कहा है -'सांख्य और योग के मध्य मूल अन्तर यह है कि सांख्य ईश्वरवाद का निषेध करता है, जबकि योग ईश्वरवाद की प्रस्थापना करता है। यही कारण है कि सांख्य को निरीश्वर सांख्य और योग को सेश्वर सांख्य कहकर विवेचित किया जाता है। 45 इस प्रकार सांख्य दर्शन के दो तत्त्व हैं, पुरुष और प्रकृति। इन दो तत्त्वों को मानने के कारण सांख्य को द्वैतवादी दर्शन कहा जाता है। दोनों तत्त्वों को द्वैतवाद में एक-दूसरे से स्वतन्त्र माना जाता है; परन्तु जब हम सांख्य के द्वैतवाद का सिंहावलोकन करते हैं, तब द्वैतवाद त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है। सांख्य के द्वैतवाद के विरुद्ध अनेक आक्षेप प्रस्तावित किये जा सकते हैं। . सांख्य ने पुरुष को आत्मा और प्रकृति को अनात्म कहा है। पुरुष दृष्टा और प्रकृति दृश्य है। पुरुष ज्ञाता है और प्रकृति ज्ञेय है। इस प्रकार तत्त्वों को एक-दूसरे से स्वतन्त्र माना जाता है, परन्तु यदि पुरुष को आत्मा और प्रकृति को अनात्म माना जाए तो दोनों को एक-दूसरे की अपेक्षा होगी। यदि अनात्म को नहीं माना जाए, तो आत्मा ज्ञान किसका प्राप्त करेगी? यदि ज्ञान प्राप्त करनेवाला आत्मा को नहीं माना जाए, तो अनात्म ज्ञान का विषय नहीं हो सकता है। इस प्रकार आत्मा अनात्म का संकेत करता है। इससे सिद्ध होता है कि पुरुष और प्रकृति एक ही परम तत्त्व के दो रूप हैं। ___ यद्यपि सांख्य पुरुष और प्रकृति के बीच द्वैत मानता है, फिर भी समस्त सांख्य-दर्शन प्रकृति की अपेक्षा पुरुष की प्रधानता पर जोर देता है।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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