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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
( 3 ) एकीभाव स्तोत्र भाषा - यह श्रीवादिराजसूरि के संस्कृत एकीभाव स्तोत्र का भावानुवाद है । इसमें 25 चौपाई एवं 2 दोहे हैं। इसमें सर्वप्रथम जिनेन्द्र को नमस्कार कर, मिथ्याभावों, जगत भ्रमण, भव-भव में अपार दुःख, स्याद्वाद, मोक्ष, द्वादशांग इत्यादि का वर्णन किया है । अन्तिम पद में श्रीवादिराज मुनि की प्रशंसा में कहा है -
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सबद काव्य हित तर्क मैं, वादिराज सिरताज ।
एकीभाव प्रगट किया, 'द्यानत' भगति जहाज || 26 || आरतियाँ-कवि द्यानतराय द्वारा रचित अनेक आरतियाँ विभिन्न शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध हैं। इनमें पंचपरमेष्ठी की आरती, आरती दशक में उपलब्ध आरतियाँ एवं जुगल आरती उपलब्ध है। इनमें पंचपरमेष्ठी की आरती श्री जैन पूजा पाठ संग्रह के पृष्ठ संख्या 344 में प्रकाशित है । यह आरती प्रत्येक जैन भक्त को कण्ठाग्र है । द्यानतविलास में आरती दशक में दस आरतियाँ हैं। क्रमशः पंच परमेष्ठी, जिनराज, मुनिराज, नेमिनाथ, निश्चय, आत्मा, वर्धमान, वृषभनाथ एवं परमात्मा की आरतियाँ हैं । ये आरतियाँ एक तरह से भक्त्यात्मक गीत ही हैं । गीत पद्धति में रची हुई आरती का व्यवहार कीर्तन की तरह होता है। साकार उपासना के कारण आरती काव्य अति लोकप्रिय हुआ है। 38
अष्टक काव्य-आठ श्लोकों वाला काव्य या स्तोत्र अष्टक कहलाता है । यह संख्याश्रित मुक्तक काव्य की श्रेणी में आता है। साकार उपासना में अष्टकों का अति लोकप्रिय स्थान रहा है । द्यानतराय द्वारा रचित एक यति भावना अष्टक उपलब्ध होता है ।
छहढाला-छह भागों में विभक्त होने से इसको छहढाला नाम दिया गया है किन्तु इसका वास्तविक नाम सुबोध पंचासिका है। स्वयं द्यानतरायजी ने छह भागों में विभक्त साधारण उपदेशात्मक रचना की थी तथा कुल 50 छन्द होने के कारण उसका नाम पंचासिका रखा था । इस सन्दर्भ में हम लेखक की कुछ पंक्तियों पर विचार कर सकते हैं
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हित सौं अर्थ बताइयौ, सुगुरु बिहारीदास | सत्रहसौं बावन बदी, तेरस कार्तिकमास ।। 46 ।। क्षय उपशम बल मैं कहे, द्यानत अच्छर एहु । दोष सुबोध पंचासिका, बुधजन शुद्ध करेहु । । 47 | 10 उपर्युक्त पंक्तियों से निम्नलिखित तथ्य फलित होते हैं- प्रथम तो