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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 27 की गाथा गाता हुआ आत्मविस्मृत हो उठता है। ___अपने पूर्व कर्मों की ओर जब वह दृष्टि डालता है, तब उसकी क्षुद्रता उसे बेचैन बना डालती है। बच्चा जिस प्रकार अपनी माता के पास मनचाही वस्तु के न मिलने पर कभी रोता है, कभी हँसता है और आत्मविश्वास की मस्ती में वह कभी नाच उठता है। ठीक यही दशा हमारे भक्त कवियों की है। वे अपने इष्ट देवता के सामने अपने हृदय के खोलने में किसी प्रकार की आनाकानी नहीं करते। वे अपने हृदय की दीनता तथा दयनीयता को कोमल शब्दों में प्रकट कर सच्ची भावुकता का परिचय देते हैं। इन्हीं गुणों के कारण इन भक्तों के द्वारा विरचित स्तोत्रों में बड़ी मोहकता है, चित्त को पिघला देने की भारी शक्ति है। संगीत का पुट मिल जाने पर इनका प्रभाव बहुत ही अधिक बढ़ जाता है। - किसी देवता का छन्दोबद्ध स्वरूप कथन या गुण कीर्तन अथवा स्तवन स्तोत्र कहलाता है।* द्यानतराय ने तीन स्तोत्र लिखे हैं जिनमें एक पार्श्वनाथ स्तोत्र मूलरूप में एवं स्वयंभू स्तोत्र और एकीभाव स्तोत्र भाषानुवाद है। (1) पार्श्वनाथ स्तोत्र-पार्श्वनाथ की स्तुति में रचित यह स्तोत्र स्तोत्र परम्परा की महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की स्तुति की गयी है। यह स्तोत्र नौ भुजंगप्रयात छन्दों और एक दोहे में निबद्ध है। यह सरल हिन्दी में रचा हुआ है। इसमें भाषा की संस्कृतनिष्ठता मौजूद है। डॉ. प्रेम सागर जैन के अनुसार इसमें स्तोत्र एवं स्तुति का मिला-जुला रूप मिलता है। कवि ने इसकी रचना करके स्तोत्र की नव्य और विकसित परम्परा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। (2) स्वयंभू स्तोत्र भाषा-यह स्वयंभू स्तोत्र का देशभाषा में अनुवाद है। यह अनुवाद स्वयंभू स्तोत्र की संस्कृत भाषा एवं भाव के अनुसार ही हुआ है। इस रचना में चौबीस चौपाई और एक दोहा छन्द है। अन्तिम दोहा छन्द जिसमें द्यानतराय द्वारा चौबीसों तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र प्रकाशित और हस्तलिखित दोनों रूपों में उपलब्ध है। इसमें तीर्थंकरों की वन्दना की गई है। जैसा कि स्तोत्र के अन्तिम पद में कहा है चौबीसों पद कमल जुग, वन्दौ मन वच काय। 'द्यानत' पढ़े सुनै सदा सो प्रभु क्यौं न सुहाय ।।38
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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