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________________ 26 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना पूजौं सदा चौबीस जिन निर्वाण भूमि निवास कौं । । 31 पूजन की स्थापना का पद सोरठा छन्द का व अष्टक गीता छन्द के हैं। जयमाला सोरठा व चौपाई छन्द में लिखी गयी है । (10) नन्दीश्वर पूजन - नन्दीश्वर पूजन में नन्दीश्वर द्वीप की स्तुति की गयी है। यह पूजन जैन पर्व अष्टानिका में की जाती है । देव गण तो साक्षात् नन्दीश्वर द्वीप में जाकर वहाँ विराजित जिनप्रतिमाओं की पूजन करते हैं, किन्तु मनुष्य वहाँ जाने में असमर्थ हैं; क्योंकि मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत तक ही जा सकते हैं । मानुषोत्तर पर्वत के आगे सिर्फ देव ही जा सकते हैं; अतः मनुष्य अष्टानिका के दिनों में नन्दीश्वर पूजन कर वहाँ विराजित जिनप्रतिमाओं की स्तुति करते हैं। जैसा कि द्यानतराय ने स्थापना के छन्द में उल्लेख किया है सरब परब में बड़ो अठाई परब है । नन्दीश्वर सुर जाहिं लेय वसु दरब है ।। हमें सकति सो नाहीं इहाँ करि थापना । पूजैं जिनगृह प्रतिमा है हित आपना । । 2 इस पूजन में स्थापना का पद अडिल्ल छन्द में व अष्टक अवतार छन्द में लिखे गये हैं । जयमाला दोहा एवं सोरठा छन्द में लिखी गयी है । विभिन्न फुटकर रचनाएँ - ( मुक्तक काव्य ) विनतियाँ -द्यानतराय ने आराधना पाठ विनती शैली में लिखा है, जो कि वृहद् जिनवाणी संग्रह पुस्तक में संग्रहीत है । विनती के अनुनय, विनय, नम्रता आदि अनेक अर्थ हैं। इसमें श्रद्धेय के प्रति विशिष्ट सम्मान प्रकट करते हुए अपने अपराधों की क्षमा माँगी जाती है और आराध्य के प्रति नम्रता भी प्रकट की जाती है। यह मूलतः कवि की भावाभिव्यक्ति होती है। स्तोत्र साहित्य - प्रत्येक धर्म में भक्त अपने हृदय की बातें भगवान के सामने प्रकट करने तथा उनकी महिमा के वर्णन में अपने कोमल तथा भक्ति पूरित हृदय की जितनी दीनता तथा कोमलता का और भगवान की उदारता का परिचय दिया है । वह सचमुच उपमातीत है । हमारा भक्त कवि कभी भगवान की दिव्य विभूतियों के दर्शन से चकित हो उठता है तो कभी भगवान के विशाल हृदय, असीम अनुकम्पा और दीनजनों पर अकारण स्नेह
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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