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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 29 पण्डित द्यानतरायजी ने अपनी कृति का नाम सुबोध पंचासिका रखा था। फिर इसका नाम छहढाला कैसे एवं कब पड़ा? यह बात स्पष्ट नहीं है। पण्डित दौलतरामजी की छहढाला की लोकप्रियता को देखकर सम्भवतः छह भागों में विभक्त देखकर इसे छहढाला का नाम दे दिया गया होगा। जो भी हो, परन्तु उक्त कृति का वास्तविक नाम सुबोध पंचासिका ही है। प्रथम अध्याय में कुल आठ छन्द हैं, जिनमें प्रथम पद में मंगलाचरण करते हुए ओंकार को तीन भुवन में सार बताकर अप्रत्यक्ष रूप से पंचपरमेष्ठी को नमन किया है। द्वितीय पद में कवि ने स्वयं को अल्पज्ञ बताते हुए भी काव्य रचने को उद्यत होने की बात कही है। तृतीय से अष्टम पद तक नरभव की दुर्लभता एवं विषयों में लीन रहने वाले को मूर्ख एवं ऊर्ध्व गति का बीज 'धर्म' को बताया है। द्वितीय अध्याय में भी कुल आठ छन्द हैं, जो कि मनहरण छन्द में लिखे हैं। इसमें भी प्रथम छन्द से अन्तिम छन्द तक जैनधर्म को नहीं धारण करने से दुखी रहने तथा जिनधर्म ग्रहण करने से भवसागर तरने की बात एवं धन व यौवन को क्षण में नष्ट होने की बात कही है। तृतीय अध्याय में रोला छन्द में लिखे कुल चार छन्द हैं। इसमें संसार की क्षणभंगुरता एवं गर्भ में अनेक दुख सहने व संयोग-वियोग के दुखों की बात की गयी है। चतुर्थ अध्याय में कुल आठ छन्द हैं। इसमें जरापने के दुःख, विषयों में मस्त रहकर आत्मा को भूलने की बात कही गयी है। धर्म को नहीं छोड़ने तथा क्रोधादि को छोड़ने की बात कही है। पाँचवें अध्याय में भी आठ छन्द हैं व इसमें जीव को धर्म की सँभार . करने को प्रेरित किया गया है। धर्म के बिना अनेक दुख सहने की बात कही गयी है। दानादि से स्वर्ग व पाप से नरक मिलने की बात कही गयी है। छठवें अध्याय में तेरह छन्द हैं। इसमें बताया है कि जीव धन के लिए नीच कर्म करता है, किन्तु नीच कर्म से धन नहीं मिलता; बल्कि धर्म से ही धन मिलता है एवं सोच-विचार न कर विधि के लिखे योग को स्वीकारने व साधर्मी की सत्संगति की बात कही गयी है। इस प्रकार यह कृति धर्म के महत्त्व व क्रोधादि के त्याग पर बल
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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