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212 कविवर धानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना नहीं, अपितु उनका काव्य अध्यात्म रस से सराबोर है। उनके काव्य के आस्वाद से अध्यात्म की अनुभूति होती है और अन्तश्चेतना ऊर्वोन्मुखता को प्राप्त होती है। उनके काव्य में किसी एक ही प्रतिबद्ध-पक्षधरता की जिद, एक ही एकांगी एकरस, जीवन दृष्टि का कीर्तिगान नहीं है। उनके काव्य में चारों ही अनुयोगों का प्रमुखता से वर्णन मिलता है।
उनका काव्य भक्ति एवं अध्यात्म की प्रचुरता के कारण ही जन-जन के कण्ठ में बसा हुआ है। आत्मा की रसमय–सम्बोधिमय समग्रता से कविवर द्यानतराय 'जन्मना कवि' हैं। उनकी साहित्यिक अस्मिता और पहचान का मूलतत्त्व उनका 'कृतिकवि' ही है और रहेगा।
जबकि साहित्यजगत और समय ने उनकी अवज्ञा नहीं की है, और न उन्हें अचर्तित ही छोड़ रखा है; फिर भी प्रायः ऐसा होता है कि समालोचकों द्वारा लेखक या काव्यकार का उसकी सम्पूर्ण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व को समेटते हुए उचित व सही समाकलन नहीं होता। जब कोई लेखक या काव्यकार वर्षों तक एकनिष्ठ होकर रचना के कई क्षेत्रों में काम करता है तो संभावना रहती है कि उसके कोई पहलू और आयाम अछूते न रहे जाएँ।
कविवर द्यानतरायजी के बहुआयामी सृजन के साथ इस प्रकार के प्रमाद और शिथिलता की संभावना रह सकती है। अतः कविवर द्यानतरायजी के जीवन एवं साहित्य-साधना पर शोध करने का मानस बनाया।
____ कविवर द्यानतराय के कृतित्व पर दृष्टिपात करते हैं तो उनकी अनेक प्रकाशित एवं अप्रकाशित रचनाएँ हिन्दी भाषा में उपलब्ध हैं, किन्तु अभी तक इन पर कोई शोधकार्य नहीं हुआ है, जबकि उनके विपुल साहित्य को देखें तो उनके साहित्य पर अनेक व्यक्ति शोध कार्य कर सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए उनके साहित्य में समाहित अध्यात्मचेतना पर शोध कार्य किया गया।
द्यानतराय का योगदान कवि द्यानतराय आध्यात्मिक कवि थे, इसलिए उनका हृदय सांसारिक जीवन और व्यवस्था के प्रति अनासक्त था, वे पूर्णतः नैतिक एवं धार्मिक व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने तत्कालीन विलासिता के विरुद्ध इन्द्रियों को जीतने की प्रेरणा दी। धर्म के नाम पर होनेवाले बाह्याडम्बरों के विरुद्ध मन,