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________________ 188 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना ( 2 ) ओज गुण - वीर, वीभत्स, भयानक और रौद्र रसात्मक स्थलों पर ओजगुण प्रकट हुआ है। तजत अंग अरधंग, करत थिर अंग पंग मन । लखि उमंग सरवंग, तजत वचननि तरंग मन ।। जित अनंग थिति सैल सिंग, गहि भावलिंग वर । तप तुरंग चढ़ि समर रंग रचि, काम जंग करि ।। अरि झट्ट झट्ट मद हट्ट करि, सट्ट सट्टं चौपट्ट किय । करि अट्ठ न भव कट्ट दहि, सट्ट सट्ट सिव सट्ट लिय । । (3) प्रसाद गुण - समास, संयुक्ताक्षर और तत्सम शब्दों से रहित सरल एवं सुबोध शब्दावली में प्रसाद गुण दिखलाई देता है । यथा 'मौन रहैं वनवास गहैं, वर काम दहैं जु सहैं दुखभारी । पाप हरैं सुमरीति करैं, जिनवैन धरैं हिरदे सुखकारी ।। देह तपैं बहु जाप जपैं, न वि आप जप ममता विसतारी । ते मुनि मूढ़ करैं जगरूठ, लहै निजगेह न चेतन धारी । । * शब्द शक्तियाँ - द्यानतराय के साहित्य में वाचक, लक्षक और व्यंजक शब्दों द्वारा वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ को प्रकट करने वाली क्रमशः अभिधा, लक्षणा, व्यंजना- तीनों शक्तियाँ दृष्टिगोचर होती है । (क) अभिधा शक्ति - सिद्धान्त कथनो में, शान्त और भक्तिरस के प्रसगों में अभिधाशक्ति सर्वाधिक प्रयुक्त हुई है । यथा मैं देव नित अरहंत चाहूँ, सिद्ध का सुमिरन करूँ । मैं सूर गुरु मुनि तीन पद ये, साधु पद हिरदय धरूँ ।। मैं धर्म करुणामयी चाहूँ, जहाँ हिंसा रचं ना । मैं शास्त्र ज्ञान विराग चाहूँ, जासु में परपंच ना । । " (ख) लक्षणा शक्ति द्यानतराय ने जहाँ एक ओर पृथक् रूप से लक्ष्यार्थ को प्रकट करने के लिए लक्षणाशक्ति का प्रयोग किया है, वहीं दूसरी ओर कथानक, सिद्धान्तकथन आदि के बीच-बीच में प्रयुक्त मुहावरे एवं लोकोक्तियों के माध्यम से भी लक्षणाशक्ति का व्यवहार किया है। चूँकि लोकोक्तियाँ और मुहावरे वाच्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ को ही प्रकट करते हैं, इसलिए उनका निरूपण लक्षणाशक्ति के अन्तर्गत ही आता है। यद्यपि
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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