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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 189 द्यानतराय के साहित्य में प्रयुक्त मुहावरे और लोकोक्तियों का विस्तृत विवेचन पृथक्प से किया गया है, तथापि बानगी के रूप में उदाहरण दृष्टव्य है. पाय चिन्तामन रतन शठ, छिपत उदधि मँझार । अंध हाथ बटेर आई, तजत ताहि गँवार । । (ग) व्यंजनाशक्ति - द्यानतराय ने व्यंग्यार्थ को प्रकट करने के लिए व्यंजनाशक्ति का भी प्रयोग किया है। उदाहरणस्वरूप उनके एक भजन में दृष्टव्य है - रे मन भज - भज दीन दयाल, जाके नाम लेत इक खिन में, कटै कोटि अघ जाल ।। रे मन ।।' शब्द योजना शब्दों का उचित और सटीक प्रयोग भाषा को सुन्दर, सशक्त और प्रभविष्णु बनाता है। द्यानतसाहित्य में शब्दों की योजना भाव एवं प्रसंग के अनुसार ही की गई है। उदाहरणार्थ - - धाम तजत धन तजत, तजत गज वर तुरंग रथ । नारि तजत नर तजत, तजत भुवपति प्रमादपथ । । आप भजत अघ भजत, भजत सब दोष भयंकर । मोह तजत मन तजत, सजत दल कम सत्रु पर । । संज्ञा - द्यानतराय द्वारा रचित विभिन्न रचनाओं में प्रयुक्त तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का विवरण देते हुए अनेक संज्ञा शब्दों का उल्लेख किया जा चुका है। सर्वनाम - द्यानतराय साहित्य में प्रयुक्त सर्वनामों का स्वरूप प्रायः ब्रजभाषा का है, किन्तु कतिपय सर्वनाम शब्दों का स्वरूप आधुनिक खड़ी बोली का भी व्यवहृत हुआ है। उदाहरणार्थ कर्म व सम्प्रदान में ब्रज के 'मोहि, मुहि, तोहि, तुहि' आदि रूपों के साथ खड़ी बोली के 'मुझको, मोकूं तोकूं' आदि रूप प्राप्त होते हैं। कहीं-कहीं विशेषकर पद्य में 'ताहि भी दिखाई पड़ जाता है । 'जिन्हें, तिन्हें, किन्हें के स्थान पर जिनको, तिनको, किनको प्रयोग में लाये गये हैं, जो ब्रजभाषा की अपेक्षा खड़ी बोली के अधिक निकट हैं ।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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