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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 3 की सघन बस्ती एवं अपेक्षाकृत प्रमुख धनी केन्द्र होने के कारण ही द्यानतराय को दिल्लीवासी बना सके। .. .. दिल्ली में गुणज्ञ साहिबराय ने अपूर्ण धर्मविलास में कुछ रचनायें और बढ़वाकर उसे पूर्ण करवाया। द्यानतराय को धर्मविलास की लोकप्रियता के कारण अत्यधिक प्रसन्नता हुई।
5. जन्म-मृत्यु एवं रचनाकाल-द्यानतराय का जन्म गोयल गोत्रीय अग्रवाल वंश में संवत् 1733 में आगरा में हुआ। जॉर्ज कनिंघम ने जमुना के पास प्राप्त प्राचीन जैनमंदिर के अवशेष व सन्मतिनाथ की प्रतिमा के आधार से संवत् 1063 में इसी आगरा को जैनधर्म का प्रमुख स्थान माना है।"
द्यानतराय के समय में भी आगरा जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र होने के अतिरिक्त कश्मीरी, गुजराती, मारवाड़ी आदि वर्गों का स्थान था।
द्यानतराय की मृत्यु संबंधी संकेत जगतराम के सैद्धान्तिक ग्रन्थ 'आगमविलास' में मिलते हैं। 63 पृष्ठों के इस ग्रन्थ का प्रारम्भ सं. 1783 . विक्रम में द्यानतराय ने किया था, किन्तु इसको जगतराम ने सं. 1784 में मैनपुरी में पूर्ण किया।
दुलीचन्द भण्डार, बड़ा मन्दिर, जयपुर से प्राप्त आगमविलास की प्रशस्ति के संदर्भ में उक्त संकेत दिये हैं। द्यानतराय द्वारा आरम्भ किये गये आगमविलास का सं. 1784 में जगतराम द्वारा पूर्ण किया जाना इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है कि द्यानतराय की मृत्यु सं. 1783 एवं 1784 के मध्य में हुई होगी।
6. द्यानतराय के पूर्वज-कविवर द्यानतराय के पूर्वज हरियाणा में स्थित हिसार एवं लालपुर नगरों में निवास करने के पश्चात् आगरा में रहने, लगे थे। इनके पितामह वीरदास का परिवार 'चौकसी' खानदान के नाम से मशहूर था। द्यानतराय के पिता श्यामदास अपनी सम्पन्नता के कारण आगरा एवं शहर के आसपास के गाँवों में ‘साहमी' कहलाते थे। द्यानतराय के पूर्वज शुरू से ही जैनधर्म में रुचि रखते थे।"
(ख) व्यक्तित्व द्यानतराय के वैयक्तिक गुणों के बारे में डॉ. ब्रजेश सिंह ने अपने शोध-प्रबन्ध में लिखा है कि वे तन और मन से सुंदर एवं कोमल स्वभाव के