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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
कवि उच्च कोटि के विद्वान होने के साथ-साथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती और उर्दू आदि भाषाओं के जानकार थे । भाषा और विषय के अतिरिक्त कवि को काव्यशास्त्रीय ज्ञान भी था ।
3. परिवार-द्यानतराय का विवाह 15 वर्ष की अवस्था में सं. 1748 में हुआ था। उनके सात पुत्र एवं तीन पुत्रियाँ थीं ।
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कवि का काव्यानुशीलन करने के पश्चात् ऐसा प्रतीत होता है कि उनका जीवन दुःखों से आक्रान्त रहा। एक स्थान पर कवि ने स्वयं लिखा है कि रोजगार बनता नहीं है, घर में धन नहीं, खाने की चिंता सदा लगी रहती है । इस अभावग्रस्त जीवन में भी पत्नी सुन्दर आभूषणों की माँग करती है । साझेदारी के चोर स्वभाव का होने के कारण घर में हमेशा धन का अभाव बना रहता है । पुत्र का द्यूतव्यसनी होना एवं पुत्री का विवाहोपरांत मर जाना भी द्यानतराय को दुःखी बना देता है । द्यानतराय की उक्त वैवाहिक जीवन की झाँकी 'उपदेश शतक' के एक छन्द में देखी जा सकती है।
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4. निवास स्थान एवं कार्यक्षेत्र - द्यानतराय का बचपन तो आगरा नगर में ही व्यतीत हुआ । उनका अध्ययन भी आगरा में ही सम्पन्न हुआ, किन्तु आजीविका के लिए वे बाद में दिल्ली आकर रहने लगे थे। जैसा कि उन्होंने स्वयं अपनी कृति 'पूरण पंचासिका' में कहा है
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आगरे में मानसिंह जौहरी की शैली हुती । दिल्ली माहिं अब सुखानन्द की शैली है ।। इहाँ उहाँ जौर करि, यादि करी लिखी नाहिं | ऐसे भाव आलससौं, मेरी मति मैलि हैं ।।
कविवर द्यानतराय के कार्यक्षेत्र आगरा और दिल्ली दोनों रहे हैं। जैनधर्म का प्रमुख स्थान और सुन्दर शहर होने के कारण द्यानतराय ने आगरा को अपने निवास के अनुकूल माना था । द्यानतराय के आविर्भाव से पहले कवि रूपचन्द, बनारसीदास एवं भैया भगवतीदास आगरा को काफी प्रसिद्धि दिला चुके थे । द्यानतराय उक्त विद्वानों के प्रति श्रद्धाभाव रखने के कारण भी आगरा के प्रति लगाव रखते थे । 'सुबोध पंचासिका' एवं 'उपदेश शतक' क्रमशः संवत् 1752 एवं 1758 में आगरा में ही लिखे गये । कवि के कथनानुसार बिहारीदास से प्रेरित होकर धर्मविलास की अपूर्ण प्रतिवे आगरा में लिख चुके थे। द्यानतराय प्रौढ़ावस्था में दिल्ली आ गये । कवि का आगरा छोड़कर दिल्ली जाने का कारण चाहे व्यापारिक रहा हों, किन्तु जैनों