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4. कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना व्यक्ति थे। विनम्रता, सदाशयता, गायनपटुता, धार्मिक सहिष्णुता, आत्मरुचिवन्तता, स्पष्टवादिता एवं परदुःखकातरता उनके स्वभाव के प्रमुख अंग थे। ज्ञान के प्रति उनकी बड़ी जिज्ञासा रही, यही कारण है कि वे बहुत-सी भाषाओं, दर्शनों एवं शास्त्रों के जानकार बने । कवि की धारणा थी कि शास्त्रज्ञान से सुख एवं शान्ति प्राप्त होती है।
(1) सदाचारी-कवि द्यानतराय-जैनधर्म के सच्चे श्रद्धानी थे। उनके जीवन में भी जैनधर्म के सिद्धान्तों का अभूतपूर्व प्रभाव रहा। उनका वास्तविक रूप साधक का था। द्यानतराय करुणावान, स्पष्टवक्ता एवं विनयशील थे। द्यानतराय स्वयं जैनधर्मानुसार आचरण करते थे। जैनधर्म में बताये गये सप्त व्यसनों का त्याग, अष्ट मूलगुणों का पालन एवं प्रतिदिन देवदर्शन के विश्वासी थे तथा रात्रिभोजन त्याग एवं छानकर जल का प्रयोग करते थे। विकट परिस्थितियों में भी कवि ने कभी धर्माचरण से मुख नहीं मोड़ा।
(2) अध्यात्मरसिक-कविवर द्यानतराय को अध्यात्म के प्रति बेहद लगाव था। उनका संपूर्ण साहित्य अध्यात्म अमृत से सराबोर है। उदाहरणस्वरूप उनका यह पद दृष्टव्य है -
मग्न रहूँ रे! शुद्धातम में मगन रहूँ रे! टेक।। . रो दोष पर को उत्पात निहचै शुद्ध चेतना जात । विधि निषेध को खेदं निवारी आप आप में आप निहारी।। बन्ध मोक्ष विकलप करि दूर आनन्द कन्द चिदातम शूर। .. दर्शन-ज्ञान-चरण समुदाय 'द्यानत' यह ही मोक्ष उपाय।।"
(3) सहृदय-सहृदयता कवि का विशेष गुण है। यदि कवि सहृदयता • से काव्य का सृजन करता है तो पाठक को रसानुभूति होती है। द्यानतराय के काव्य से उनके व्यक्तित्व का सहृदय होना सिद्ध होता है।"
(4) विद्वान-कविवर द्यानतराय के साहित्य का अध्ययन करने के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि वे योग्य व्यक्ति थे। ज्ञान का अक्षयभण्डार . उनमें समाहित था। वे काव्य रचना में भी कुशल थे।
(5) गणितज्ञ-द्यानतराय की चर्चा शतक के अध्ययन से हम कह सकते हैं कि जैसा वर्णन उन्होंने गुणस्थानों, मार्गणास्थानों का किया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। उदाहरण स्वरूप -
चौदह बत्तीस तेतीस छत्तीसे इकतिस इकतिस इकतिस मान। . अट्टाइस अट्ठाइस बाइस बाइस बार बीस मैं थान।