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108 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
3. अवधिं दर्शनावरण- अवधिदर्शन द्वारा दर्शन नहीं होने देता। 4: केवल दर्शनावरण- जो केवलदर्शन का आवरण करे।
5. स्त्यानगृद्धिदर्शनावरण- जो निद्रा में अपना प्रकाश करे अर्थात् जिसके उदय होने पर यह जीव नींद में ही बहुत पराक्रम का कार्य करे, परन्तु भान नहीं रहे कि क्या किया।
_-_6. निद्रा-निद्रा दर्शनावरण कर्म- जिसके द्वारा निद्रा की पुनः पुनः प्रवृत्ति हो अर्थात् जिससे आँखों की पलक भी नहीं उघाड़ सके।
7. प्रचला-प्रचला दर्शनावरण कर्म- जो कर्म के उदय से जीव को बार-बार सुलावे।
8. प्रचला दर्शनावरण- जिस निद्रा में कुछ कार्य करे, जिसको याद भी करे।
. 9. निद्रा दर्शनावरण- जिसके उदय में मद-खेद आदि दूर करने के लिए केवल सोना हो।
(3) वेदनीय कर्म- इष्टानिष्ट बाह्य विषयों का या भोगों का संयोग-वियोग करनेवाला वेदनीय कर्म है। यह दो प्रकार का है - .
1. सातावेदनीय कर्म- जो उदय में आकर जीव को देवगति आदि में शारीरिक व मानसिक सुखों का अनुभव करावे, साता का भोग करावे।
2. असातावेदनीय कर्म- जिसके उदय का फल अनेक प्रकार के नरकादिक गति जन्य दुःखों के भोग का अनुभव है।
(4) मोहनीय कर्म- ये दो प्रकार के होते हैं - 1. दर्शन मोहनीय- जो दर्शन द्वारा मोहित करे-ठगे।
2. चारित्र मोहनीय- जो चारित्र को मोहित करे-ठगे। ... (5) आयु कर्म- आयु कर्म चार प्रकार का हैं - 1. तिर्यंच आयु- जो आत्मा को तिर्यंच शरीर में प्राप्त करे या रोके। 2. मनुष्य आयु- जो आत्मा को मनुष्य शरीर में प्राप्त करे या रोके। 3. देव आयु- जो आत्मा को देव आयु के शरीर में प्राप्त करे या रोके।
4. नरक आयु- जो आत्मा को नारकी शरीर में प्राप्त करे या रोके। .... (6) नामकर्म- नामकर्म के 93 भेद हैं, जो निम्नलिखित हैं
1. गति नामकर्म – 4