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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना प्रानी ये संसार असार है, गर्व न कर मन माहिं । । टेक ॥। जे जे उपजे भूमि पै, जम सो छूटे नाहिं | | प्रानी || इन्द्र महाजोधा बली, जीत्यो रावण राय । लक्ष्मण ने रावण हत्यो, जम गयो लक्ष्मण खाय ।। प्रानी । । कंस जरासिन्ध सूरमा, मारे कृष्ण गुपाल ।
ताको जरहकुमार ने, मार्यो सो ऊकाल । । प्रानी । । 1
इसी तरह एक पद में संसार के झूठेपन का वर्णन करते हुए द्यानतराय ने पुण्य-पाप दोनों को संसार का कारण बताया है और संसार से विरक्ति की भावना को व्यक्त किया है
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हम न किसी के कोई न हमारा, झूठा है जग का व्यवहारा । । टेक । । तन सम्बन्धी सब परिवारा, सो तन हमने जाना न्यारा । । पुण्य उदय सुख का बढ़वारा, पाप उदय दुख होत अपारा। पुण्य-पाप दोऊ संसारा, मैं सब देखन जाननहारा ।। मैं तिहुँ जग तिहुँ काल अकेला, परसंयोग भया बहुमेला । थिति पूरी कर खिर - खिर जाहीं, मेरे हर्ष - शोक कछु नाहीं । रागभाव ते सज्जन माने, द्वेषभाव ते दुर्जन जाने । राग-द्वेष दोऊ मम नाहीं द्यानत मैं चेतन पद माहीं । ।
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इसी प्रकार के भाव निम्न पद में भी द्यानतराय ने व्यक्त किये हैंमिथ्या यह संसार है रे, झूठा यह संसार है रे ।।
जो देही वह रस सौं पोषै, सो नहिं संग चलै रे,
औरन कौं तोहि कौन भरोसौ नाहक मोह करै रे । । मिथ्या ।। सुख की बातैं बूझै नाहिं, दुख कौं सुख लेखै रे ।
मूढौ माहीं माता डोलै, साधौ नाल डरै रे । । मिथ्या ।। झूठ कमाता झूठी खाता, झूठी जाप जपै रे ।
सच्चा साँईं सूझै नाहिं, क्यौ कर पार लगै रे ।। मिथ्या । । जम सौं डरता फूला फिरता करता मैं मैं मैरे । द्यानत स्याना सोई जाना, जो जप ध्यान धरै रे ।। मिथ्या । | 3 दुनिया को मतलबी बताते हुए द्यानतराय लिखते हैं दुनिया मतलब की गरजी अब मोहे जान पड़ी। हरा, वृक्ष पे पंछी बैठा रटता नाम
हरी ।
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