________________ तन्निश्चयात्मकं समारोपविरुद्धत्वादनुमानवत्।। 3 // सूत्रान्वय : तत् = वह (ज्ञान) निश्चयात्मकं = व्यवसायात्मक, समारोप = संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय, विरुद्धत्वात् = विरोधी होने से, अनुमानवत् = अनुमान के समान। सूत्रार्थ : वह ज्ञान निश्चयात्मक है क्योंकि समारोप का विरोधी होने से, जैसे अनुमान की तरह। संस्कृतार्थ : यथा समारोपविरुद्धत्वाद् बौद्धांगीकृतमनुमानं तन्मते निश्चयात्मकं, तथार्हन्मते समारोपपविरुद्धत्वात्प्रमाणमपि निश्चयात्मकम् / टीकार्थ : जैसे समारोप का विरोधी होने से बौद्धों के द्वारा स्वीकार अनुमान उनके मत में निश्चयात्मक है। उसी प्रकार अर्हन्त् (जिन) के मत में समारोप का विरोधी होने से प्रमाण भी (ज्ञान) निश्चयात्मक है। विशेष - धर्मी = प्रमाण रूप से स्वीकृत ज्ञानरूप वस्तु। साध्य = व्यवसायात्मक, हेतुः = समारोप विरोधीपना, दृष्टान्त = अनुमान। 36. समारोप किसे कहते हैं ? संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय को समारोप कहते हैं। 37. सूत्र में अनुमान का दृष्टान्त क्यों दिया है ? बौद्ध लोग प्रत्यक्ष को निर्विकल्प मानते हैं और अनुमान को पदार्थों का निश्चय करने वाला मानते हैं। इसलिए जब आप अनुमान को निश्चयात्मक मानते हैं तो प्रत्यक्ष को भी निश्चयात्मक मानना चाहिए। 38. अनुमान किसे कहते हैं ? साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। 39. जिन ( अर्हन्त ) किसे कहते हैं ? जो वीतरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी होते हैं, उन्हें जिन कहते हैं। 40. अर्हन्तमत की मुख्य विशेषता क्या है ? 23