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तीन आदि प्रमाणों की संख्या का निराकरण किया है। 'विशदं प्रत्यक्षं' सूत्र के द्वारा विशद (निर्मल) ज्ञान को प्रत्यक्ष बताया है और प्रत्यक्ष के मुख्य और सांव्यवहारिक दो भेद किये हैं। वीर्यान्तराय तथा ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम तथा इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाले ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष तथा ज्ञानावरण कर्म के क्षय एवं इन्द्रिय आलोक आदि की अपेक्षा न रखने वाले अतीन्द्रिय ज्ञान का कारण मानने में दोष दिखाने के साथ-साथ ज्ञान के कारण को ज्ञान का विषय मानने पर व्यभिचार का प्रतिपादन किया गया है।
तृतीय समुद्देश में 97 सूत्र हैं। इसमें अविशद ज्ञान को परोक्ष का लक्षण बताकर परोक्ष प्रमाण के स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम पाँच भेदों का उदाहरण सहित प्रतिपादन किया गया है। अनुमान के दो अंगों का विवेचन, उदाहरण, उपनय, निगमन कथा में उदाहरणादि की स्वीकृति, हेतु
और अविनाभाव का स्वरूप, साध्य का लक्षण, साध्य के इष्ट, अबाधित और असिद्धि के प्रकार, पक्ष प्रयोग की आवश्यकता, अनुमान के स्वार्थानुमान परार्थानुमान भेदों का वर्णन, हेतु के उपलब्धि, अनुपलब्धि तथा उनके विरुद्धोपलब्धि, अविरुद्धोपलब्धि, विरुद्धानुपलब्धि, अविरुद्धानुपलब्धि एवं
अविरुद्धोपलब्धि के व्याप्य, कार्य कारण, पूर्वचर, उत्तरचर, सहचर, विरुद्धोपलब्धि के भी विरुद्धव्याप्य, विरुद्धकार्य, विरुद्धकारण, विरुद्धपूर्वचर, विरुद्धउत्तरचर और विरुद्धसहचर, अविरुद्धानुपलब्धि के अविरुद्धस्वभावानुप -लब्धि, व्यापकानुपलब्धि, कार्यानुपलब्धि, कारणानुपलब्धि, पूर्वचरानुपलब्धि, उत्तरचरानुपलब्धि, सहचरानुपलब्धि, विरुद्धानुपलब्धि के विरुद्ध कार्यानुपलब्धि विरुद्धकारणानुपलब्धि और विरुद्धस्वभावानुपलब्धि आदि सभी भेद प्रभेदों का विशद विवेचन किया गया है। बौद्धों के प्रति कारण हेतु की सिद्धि, आगमप्रमाण का लक्षण तथा शब्द में वस्तु प्रतिपादन की शक्ति का भी इस समुद्देश में वर्णन मिलता है।
चतुर्थ समुद्देश में 9 सूत्र हैं। 'सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः' सूत्र के द्वारा सामान्य विशेष उभय रूप प्रमाण के विषय को सिद्ध कर सांख्यों के केवल विशेष तथा नैयायिक वैशेषिकों के स्वतन्त्र रूप से सामान्य विशेष का निराकरण किया गया है। इस समुद्देश में सामान्य के तिर्यक् सामान्य तथा
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