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॥ लघु शान्ति विधान ।।
रत्नत्रय धर्म को अर्घ्य (वीर)
जय जय सम्यग्दर्शन पावन, मिथ्या भ्रम-नाशक श्रद्धान । जय जय सम्यग्ज्ञान तमहर, जय जय वीतराग - विज्ञान ।। जय जय सम्यग्चारित्र निर्मल, मोह-क्षोभ हर महिमावान । अनुपम रत्नत्रय धारण कर, मोक्षमार्ग पर करूँ प्रयाण ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्मायार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । सम्यग्दर्शन को अर्घ्य
आत्मतत्त्व की प्रतीति निश्चय, सात तत्त्व श्रद्धा व्यवहार । सम्यग्दर्शन से हो जाते, भव्य जीव भवसागर पार ।। विपरीताभिनिवेश रहित, समकित अधिगमज - निसर्गज सार । औपशमिक क्षायिक क्षयोपशम, होता है यह तीन प्रकार ।। जय जय सम्यग्दर्शन आठों, अंगसहित अनुपम सुखकार । यही धर्म का सुदृढ़ मूल है, परम शान्ति दाता शिवकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यग्दर्शनायार्ध्यं निर्वपामीति स्वाहा । सम्यग्ज्ञान को अर्ध्य
निज अभेद का ज्ञान सुनिश्चय, आठ भेद सब हैं व्यवहार । सम्यग्ज्ञान परम हितकारी, शिवसुख दाता मंगलकार ।। जय जय सम्यग्ज्ञान अष्ट, अंगों से युक्त मोक्ष सुखकार । परम शान्ति का मूल यही है, शिवसुख दाता अपरम्पार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानायार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । सम्यक चारित्र को अर्घ्य
निजस्वरूप में रमण सुनिश्चय, दो प्रकार चारित्र व्यवहार । श्रावक त्रेपन क्रिया साधु का, तेरह विध चारित्राधार ।। श्रेष्ठ धर्म है श्रेष्ठ मार्ग है, श्रेष्ठ सुमुनि पद शिवसुखकार । सम्यक्चारित्र बिना न कोई, पा सकता है शान्ति अपार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्रायार्ध्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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