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= लघु शान्ति विधान॥ = अन्तिम महार्घ्य
(मानव) जीवत्वशक्ति के स्वामी, ध्रुव ज्ञायक ज्ञाता ज्ञानी। श्री महावीरस्वामी की, तुमने ना एक भी मानी।। हे मेरे चेतन बोलो, कानों में अमृत घोलो। तुम कौन कहाँ से आए, अब तक हो क्यों अज्ञानी।। अब शिवपथ पर ही चलना, आठों कर्मों को दलना। निज की छाया में पलना, जो हैं प्रसिद्ध लासानी।। विज्ञान-ज्ञान के द्वारा, कट जाती भव-दुःखकारा। कर्मों के बन्धन काटो, बन वीतराग-विज्ञानी ।। तुम स्वपर प्रकाशक नामी, तुम ही हो अन्तर्यामी। सारे विभाव तुम नाशो, तुम करो न अब नादानी।। रागादि भाव को तज कर, पर के ममत्व को जीतो। शुद्धात्मतत्त्व निज ध्या लो, बन जाओ केवलज्ञानी।। है शुक्लध्यान की बेला, है गुण अनन्त का मेला। तुम भूल न जाना शिवपथ, तुम तो हो ज्ञानी-ध्यानी॥ अन्तिम अपूर्व अवसर है, तुम चूक न जाना चेतन। . चैतन्य भावना भाना, मत बनना तुम अभिमानी।। नवदेवों की पूजन कर, जागा सौभाग्य तुम्हारा । पर्यायदृष्टि को तज कर, समकित की महिमा जानी।। अब द्रव्यदृष्टि बन जाओ, तो परम शान्ति पाओगे। लो लक्ष्य त्रिकाली ध्रुव का, कहती है श्री जिनवाणी।।
(दोहा) महार्य अर्पण करूँ, श्री नवदेव महान । सम्यग्दर्शन प्राप्त कर, करूँ कर्म अवसान ।। ॐ ह्रीं श्री नवदेवेभ्यो महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
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