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॥ लघु शान्ति विधान ।।
'दूजी विनय भावना तीजी, शील भावना सुखकारी । है अभीक्ष्ण- ज्ञानोपयोग, संवेगभाव है हितकारी ।। शक्तिपूर्वक त्याग जानिए, शक्तिपूर्वक तप करिये । साधुसमाधि भावना सुखमय, वैय्यावृत्तिकरण धरिये ।। अर्हदभक्ति करूँ मंगलमय, आचार्यों की भक्ति करूँ । बहुश्रुतभक्ति हृदय में धारूँ, प्रवचनभक्ति सदैव करूँ ।। आवश्यक अपरिहाणि भावना, मार्गप्रभावना हे जिन हो । वात्सल्य भावना हृदय धरो, सोलहकारण जिनवर हो ।। अर्घ्य चढ़ाऊँ भक्तिभाव से, परम शान्ति पाऊँ स्वामी । तीर्थंकर पद लक्ष्य छोड़कर, आत्मलक्ष्य पाऊँ नामी ॥ ॐ ह्रीं श्री षोडशकारणभावनायै अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । दशलक्षण धर्म को अर्घ्य (सार-जोगीरासा)
उत्तम क्षमाधर्म उर धारूँ, और कषाय निवारूँ । उत्तम मार्दवधर्म ग्रहण कर, विनय स्वरूप निहारूँ ।। उत्तम आर्जवधर्म धार उर, माया कषाय संहारूँ । उत्तम सत्यस्वरूप स्वयं का, सत्यधर्म उर धारूँ ।। उत्तम शौचधर्म उर धर कर, लोभकषाय निवारूँ । उत्तम संयम षट्कायिक, जीवों पर करुणा धारूँ ।। उत्तम तप धर शुक्लध्यान से, अष्ट कर्म सब जारूँ । उत्तम त्याग पंच पापों को, पूर्णतया संहारूँ ।। उत्तम आकिंचन अपरिग्रह, पूर्ण हृदय में लाऊँ । उत्तम ब्रह्मचर्य उर धारूँ, महाशील गुण पाऊँ ।। दश धर्मों का पालन करके, मुक्ति-भवन में जाऊँ । सादि - अनन्त शान्ति सुखसागर, अन्तर में लहराऊँ ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशधर्मायार्ध्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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