________________
-
-
-
= |लघु शान्ति विधान ॥
जिनवाणीकोअर्घ्य द्वादश अंग पूर्व चौदह से, शोभित है श्री जिनवाणी। सूत्र चूलिका प्रकीर्णक, परिकर्म विभूषित कल्याणी।। है प्रथमानुयोग अति मनहर, पाप-पुण्य फल तथा प्रधान। त्रैसठ महाशलाका पुरुषों का, चारित्र जु श्रेष्ठ महान। है करणानुयोग अति पावन, तीन लोक का सत्यस्वरूप। जीवों के परिणाम मार्गणा, गुणस्थान का ज्ञान अनूप ॥ है चरणानुयोग में श्रावक, मुनियों का आचरण महान । अन्तरंग भावों के ही, अनुसार बाह्य आचरण प्रधान ।। है द्रव्यानुयोग में सच्चा, उत्तम स्वरूप कथन । छह द्रव्यों अरु सात तत्त्व, अरु नवपदार्थ का है वर्णन ॥ सबके भेद-प्रभेद अनेकों, जिनश्रुत महिमा अपरम्पार । माता जिनवाणी को वन्दन, नमन करूँ मैं बारम्बार।। सतत शान्ति की प्राप्ति हेतु मैं, स्वाध्याय का नियम करूँ। वीतराग-विज्ञान किरण पा, मिथ्या भ्रम का वमन करूँ। ॐ ह्रीं श्री सर्वपूज्यजिनवाणी द्वादशाङ्गायायँ निर्वपामीति स्वाहा।
- जिनधर्मको अर्घ्य वस्तु-स्वभाव स्वधर्म है, जिनवाणी उपदेश । आत्मधर्म जु सर्वोत्तम, यही धर्म सन्देश ।। ऊँ ह्रीं श्री शाश्वतजिनधर्मायार्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। सोलहकारणभावनाओं को अर्घ्य
(वीर) षोडशकारण भव्य भावनाएँ, मैं प्रभु भाऊँ तत्काल । त्रिभुवन में सर्वोत्कृष्ट, तीर्थंकर पद दाता सुविशाल ।
दर्शविशुद्धि भावना के बिन, शेष भावनाएँ हैं व्यर्थ । RSS पहली दर्शविशुद्धि है, भव-रोगों की औषधि सार्थ ।। 5
-
(१९)