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________________ = ॥ लघु शान्ति विधान ॥ = दर्शन-ज्ञान-चारित्र-भक्ति उर हो सदा । परम शान्ति सुख पाऊँ स्वामी सर्वदा ।। ॐ ह्रीं श्री पंचविंशतिगुणमण्डित-उपाध्यायपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा। साधुपरमेष्ठीको अर्घ्य पंचमहाव्रत पंचसमिति पालक सुमुनि । षट् आवश्यक पंचेन्द्रिय वश हैं सुमुनि ।। शेष सात गुण से मुनि हैं शोभायमान । अट्ठाईस मूलगुण हैं मुनि के महान ।। ढाईद्वीप में भावलिंग मुनि हैं सदा । त्रय कम नव करोड़ मुनि रहते सर्वदा ।। सर्वसाधु मुनियों को नित वन्दन करूँ। मैं भी मुनि होऊँ यह भाव हृदय धरूँ ।। दर्शन-ज्ञान-चारित्र-भक्ति उर हो सदा । परम शान्ति सुख पाऊँ स्वामी सर्वदा ।। ॐ ह्रीं श्री अष्टविंशतिगुणमण्डित-साधुपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वामीति स्वाहा। वर्तमान चौबीसी को अर्घ्य (चौपाई) भरतक्षेत्र के वर्तमान प्रभु, चौबीसों तीर्थेश महाविभु। ऋषभअजितसम्भव अभिनन्दन,सुमतिपद्मप्रभसुपार्श्ववन्दन। चन्द्र पुष्पशीतल श्रेयांस जिन, वासुपूज्य श्री विमल अनन्त जिन। धर्मशान्ति श्री कुथु अरह प्रभु, मल्लि मुनिसुव्रत नमि नेमि विभु॥ पार्श्वनाथ श्री महावीर जय, शिवसुख कर्ता प्रभु मंगलमय । परम शान्ति सुखदाता स्वामी, भवदुःख नाशो अन्तर्यामी। ॐ ह्रीं श्री भरतक्षेत्रस्थ वर्तमानचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा। मध्यलोकमेंढाईद्वीपके अस्सी पंचमेरुजिनालयों को अर्घ्य (वीर) तीन लोक में मध्यलोक हैं, इसमें ढाईद्वीप महान । जम्बू-धातकी-पुष्करार्ध में, पाँच मेरु हैं शोभावान ।। (१०) S -
SR No.007146
Book TitleLaghu Shanti Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Foundation
Publication Year2009
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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