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= || लघु शान्ति विधान।। =
सिद्धपरमेष्ठीको अर्घ्य गुण अनन्त के स्वामी सिद्धों को नमन । मुख्य अष्ट गुणधारी प्रभुओं को नमन ।। त्रिलोकाग्र पर सिद्ध शिलापति आप हो । निजानन्द रसलीन स्वज्ञायक आप हो ।। सिद्धचक्र सम्बन्धित सिद्ध महान हो। तीन लोक में तुम ही श्रेष्ठ प्रधान हो ।। दर्शन-ज्ञान-चारित्र-भक्ति उर हो सदा। परम शान्ति सुख पाऊँ स्वामी सर्वदा ।। ॐ ह्रीं श्री अष्टगुणमण्डित-सिद्धपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
आचार्य परमेष्ठीको अर्घ्य आचार्यों को भावसहित मेरा नमन । ऋषि-मुनि-यति-अनगार संघ चउपति नमन।। है छत्तीस गुणों के धारी सर्वदा। पंचाचार पालते. स्वामी सर्वदा ।। आचार्यों को विनय सहित वन्दन करूँ । महामोह मिथ्यात्व तिमिर पूरा हरूँ ।। दर्शन-ज्ञान-चारित्र-भक्ति उर हो सदा।
परम शान्ति सुख पाऊँ स्वामी सर्वदा ।। ॐ ह्रीं श्री षट्त्रिंशत्गुणमण्डित-आचार्यपरमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
उपाध्याय परमेष्ठी को अर्घ्य । उपाध्याय गुरुवर श्रुतज्ञान प्रधान हैं। ग्यारह अंग पूर्व चौदह का ज्ञान है। है पच्चीस गुणों से शोभित सर्वदा। यति-मुनियों को आप पढ़ाते हैं सदा।। उपाध्याय गुरुओं को मैं वन्दन करूँ । जो भी है अज्ञान उसे पूरा हरूँ॥
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