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गणधर आदि से भी शंका-समाधान कर उन्होंने अपने ज्ञान को अत्यधिक निमल किया था।
वहाँ से यहाँ वापिस आकर आपने उस दिव्यज्ञान के माध्यम से सनातन सत्य वस्तुधर्म/जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में, जिनवाणी माँ का कोश समृद्ध करने में अभूतपूर्व योगदान दिया था। इसी आधार पर तत्कालीन गृहस्थ श्रावकों ने ‘जीवंत तीर्थनाथ' के रूप में श्री सीमंधर भगवान की प्रतिमा भी प्रतिष्ठित कराई थी। इसप्रकार भारतवासी आचार्य श्री कुंदकुंददेव के कारण श्री सीमंधर भगवान से जुड़ गए हैं।
वैसे तो यहाँ इस पंचमकाल में साक्षात् तीर्थंकरों का विरह होने के कारण प्रारम्भ से ही विदेह क्षेत्रस्थ विद्यमान विहरमान बीस तीर्थंकर उपास्य रहे हैं। भक्तगण स्तुतिओं, स्तोत्रों, पूजनों, विधानों, प्राण-प्रतिष्ठाओं आदि के माध्यम से उनके प्रति अपने भक्तिभाव व्यक्त करते रहे हैं; परन्तु अभी इस अर्ध सदी में
आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी द्वारा मुख्य रूप से समयसार को आधार बनाकर जो आध्यात्मिक जिनवाणी गंगा की अविरल धारा प्रवाहित हुई है; इसके कारण श्री सीमंधर भगवान के साक्षात् दर्शन से महिमामंडित, समयसार आदि परमागमों के प्रणेता आचार्य श्री कुंदकुंददेव के प्रति विशिष्ट श्रद्धावनत भक्तगणों ने मात्र श्री सीमंधर स्वामी की प्राण-प्रतिष्ठा भी प्रारम्भ की है। तदनुसार गुणानुरागी भक्त हृदय कविओं ने स्तुतिआँ, स्तोत्र, पूजन आदि के माध्यम से उनके प्रति अपने भक्तिभाव भी समर्पित किए हैं। उसी धारा में भक्त-हृदय ‘डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल जयपुर' ने भी प्रस्तुत पूजन के माध्यम से अपना भक्ति-भाव व्यक्त किया है।
प्रश्न 2: श्री सीमंधर भगवान की पूजन का अर्थ लिखिए।
उत्तरः ‘डॉ हुकमचन्द भारिल्ल' द्वारा रचित प्रस्तुत 'श्री सीमंधर-पूजन' भाषा, भाव, साहित्य तथा अध्यात्म की दृष्टि से एक अद्वितीय रचना है। इसमें पूजन सामग्री के कल्पित गुणों को वास्तविक रूप से भगवान में देखकर, उनके प्रति आकर्षित हो, उनके प्रतीक रूप में यह सामग्री भगवान के चरणों में समर्पित करने की भावना भाता हुआ भक्त सम्यग्दर्शन की प्रगटता से लेकर मोक्ष-प्राप्ति पर्यंत का उपाय भगवान से सीखकर स्वयं भगवान वन जाने का संकल्प व्यक्त करता हुआ, समयसारमय सीमंधर भगवान की अपरंपरा महिमा से अभिभूत हो अपनी वाणी को विराम देता है।
सीमंधर पूजन /2 -