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संकेतों के आधार पर सृष्टि उत्पत्तिवाद, सृष्टि प्रलयवाद आदि असम्भव और मनगढन्त बातों की कथाओं द्वारा समीक्षा की गई है।
3. उपासकाचार – 15 अध्याय और 1352 पद्यों में निबद्ध यह ग्रंथ अमितगति श्रावकाचार नाम से भी प्रसिद्ध है। विशद, सुगम और विस्तृत इस श्रावकाचार में मिथ्यात्व-सम्यक्त्व का अन्तर, सप्त तत्त्व, अष्ट मूलगुण, बारह व्रत, ध्यान आदि का विस्तृत वर्णन है।
4. पंचसंग्रह - 1375 पद्यों में निबद्ध यह ग्रंथ प्राकृत पंचसंग्रह के समान करणानुयोग के विषयों को अत्यन्त सरल और मधुर शैली में स्पष्ट करता है। इसमें जीवसमास, प्रकृतिस्तव, कर्मबंधस्तव, शतक और सप्तति - इन पाँच प्रकरणों द्वारा कर्म-सिद्धान्त को अवगत कराया गया है।
5. आराधना - आचार्य शिवार्य कृत भगवती आराधना का यह संस्कृत रूपान्तर है। इसमें दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप रूप चारों आराधनाओं के विवेचन के साथ ही प्रसंगवश जैनधर्म के अन्यान्य प्रमेय भी समाविष्ट हैं। . 6. भावना द्वात्रिंशतिका - 33 पद्यों का यह छोटा सा प्रकरण सांसारिक भावों से भिन्न अपने आत्मा की शुद्धता को पर्याय में व्यक्त करने का मार्ग प्रशस्त करनेवाला अत्यन्त सरस और हृदय को पावन करनेवाला ग्रन्थ है। ___ इनके अतिरिक्त लघु और वृहत् सामायिक पाठ, जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति, सार्धद्वयद्वीप-प्रज्ञप्ति, चंद्र-प्रज्ञप्ति और व्याख्या-प्रज्ञप्ति ग्रंथ भी आपकी रचनाएं माने जाते हैं ।
इसप्रकार आपने अपनी लेखनी द्वारा जिनवाणी माँ के अक्षय कोश को समृद्ध करने में अनुकरणीय, अनुमोदनीय सहयोग प्रदान किया है।
प्रश्न 2: भावना बत्तीसी का सामान्य अर्थ लिखिए।
उत्तरः आचार्य अमितगति की अनुपम, अध्यात्म रस गर्भित कृति भावना द्वात्रिंशतिका का यह सामान्य भावानुवाद है । यह आध्यात्मिक विद्वान पण्डित जुगल किशोर जी 'युगल' की एक अनूदित प्रसिद्धतम कृति है। इसमें साम्यभाव की साधना का प्रयोगात्मक प्रयास मुखरित हुआ है। इसमें वीतरागी भगवान से प्रार्थना के रूप में अपना कर्तव्य सुनिश्चित करते हुए; अपने समस्त दुष्कृत्यों की प्रतिक्रमण,
आलोचना, प्रत्याख्यान, निन्दा, गर्हा द्वारा क्षमा-याचना कर; वस्तु-स्वरूप के यथार्थ निर्णय पूर्वक स्व-पर का भेदविज्ञान कर आत्म-प्रतीति पूर्वक जगत से उदास हो स्वरूप-स्थिरता की भावना परिपुष्ट की गई है। इसका क्रमशः अर्थ इसप्रकार है -
भावना बत्तीसी /136